शीतल बयार चले,नदी का दुलार मिले,
बरगद छांव तले ,प्यार है पलता ।
शोभती स्वर्णिम बेला, सुहाता गोधूली रेला,
सर्पीली सी पगडंडी, मन है हरता।
प्रेमभाव परोसना, सादा है सरल खाना,
चना गुड़ मुट्ठीभर, गाँव है सरता।
नीर भर लाती नार, इठलाती, इतराती,
राह भर बतियाती, मन है भरता।
डॉ दवीना अमर ठकराल