पैसा मेरे पास नहीं है,
किस-किस को यह बात बताऊं।।
बिटिया रानी हुई सयानी,
बोलो चैन कहां से पाऊं।।
जिसको देखो वही चाहता,
पैसे का सुखचैन ।।
जिसको पैसा दे नहीं पाता,
वही बोलता है कटु बैन।।
पैसा ही है सब कुछ जिनका,
उनसे मैं घबराऊँ।।
बिटिया रानी हुई सयानी,
बोलो चैन कहां से पाऊं।।1।।
बिटिया रानी हुई सयानी,
सर पर चिंता हुई है भारी।।
रूप बदलकर घर से निकला,
मानो मैं बन गया भिखारी।।
ऊंची -ऊंची मांगे सुनकर,
उनसे मै डर जाऊं।।
बिटिया रानी हुई सयानी,
बोलो चैन कहां से पाऊं।।2।।
जिसको देखो वही चाहता,
चांदी की दीवार ।।
पारस बटिया की तलाश में,
कुछ बैठे बेचारे ।।
इन मगते अमीरों को
कैसे मैं समझाऊं ।।
बिटिया रानी हुई सयानी
बोलो चैन कहां से पाऊं।।3।।
हीरे मोती की तलाश में,
मेरी बात कहां सुनते हैं।।
उनके फूल धूल में नहीं,
सदा सोने पर खिलते हैं।।
फूल खिला जो मेरी बगिया,
उसको कहां चढ़ाऊँ।।
बिटिया रानी हुई सयानी,
बोलो चैन कहां से पाऊं ।।4।।
उनको सरोकार क्या है,
बिटिया की शिक्षा दीक्षा से।।
उनको केवल सरोकारों है,
दान रूप की भी इच्छा से।।
कभी-कभी आता है मन में,
सूली पर चढ़ जाऊँ।।
बिटिया रानी हुई सयानी
बोल चैन कहां से पाऊं।।5।।
कवि ललित पाल सिंह अर्कवंशी
अगौलपुर ,गोपामऊ
हरदोई – उत्तर प्रदेश
मो. 9792685856