सुख का तिलिस्म खुद में !”

अपने ही से बतियाईए दूर न जाइये

गाईये गाईये अपने भीतर ही गाईये !

ये न कहिए ये तो बात पर बात निकल गई

ऐब  छुपाने के ये  तरीके  न अपनाईये !

इनकी उनकी करना वक्त जाया करना है

बड़े हो गए अब तो खुद ही को बतलाइए !

भीतर में  इतना कुछ है  सोचा न होगा

थोड़ा खुद अपने पर भी तरस खाईये !

शेख़जी बने फिरते हो सिर फुटौव्वल करते हो

बच्चे नहीं हो जनाब खुद का दिल बहलाईये !

हैरत की बात खुद में खजाने लिए फिरते हो

जरा अपना तिलिस्म भी तो आजमाईये !

इतने नायाब तोहफे मिलेंगे पीढ़ियां तिर जाएंगी

आनाकानी नहीं, गुपचुप भीतर निकल जाईये !!

सुरेश तांतेड़ , 

चेन्नई – 600095

दि. 29 / 4 / 22