न बचाओ दुनिया जल्दबाजी में, कुछ इंसानियत की भी चलनी चाहिए ,
देते हो दुहाई रस्मोरिवाजों की, तासीर इंसानियत की बदलनी चाहिए !!
बटोर ली बहुत तालियां महफिलों में , खुशनुमा तरानों को सुनाकर ,
“रूह की आवाज़ों” को भी अब ,यहां कुछ जगह तो मिलनी चाहिए !!
यूं तो आग का दरिया है सूरज , लेकिन जगमगाए जहां सब इससे ही ,
“आग” जो हर एक मन में है , कुछ वो भी तो अब “पिघलनी” चाहिए !!
सुन ले ए मानस..ये सरासर झूठ है कि “बगावत ही बड़ा बदलाव” है ,
दुआ यही कि हो अहमियत सबकी , शमा ये मन में जलनी चाहिए !!
सुनो.. धूप के इस लंबे सफ़र में , कभी तो थोड़ी छांव मिले ,
इस तपती राह में “मनसी” कोई शाखा-ए-बारिश की हिलनी चाहिए !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
मेरठ, उत्तर प्रदेश