ये इश्क जबसे मेरी रूह में घुला मिला।
ये रूप मेरा तबसे लागे कुछ खिला खिला।
तेरे इश्क में बन गई इक पाषाण शिला।
क्षितिश मन तेरी नादानी का किससे करु गिला।
ये इश्क जबसे मेरी रूह में जबसे घुला मिला।
सरमाया बन गया इश्क इस जिंदगी का।
ये इश्क दिन में ख्वाब दिखाए यामिनी का।
रातों में क्यों तड़प बढ़ाएं बता दामिनी ना।
ये इश्क जबसे मेरी रूह में
जबसे घुला मिला।
बैरी ये इश्क बन गया अपना प्रतिद्वंदी सा।
खामोश अधरों ने उसके मुझसे क्या कहा।
शर्मशार पलकों ने फिर उठने से मना किया।
ये इश्क जबसे मेरी रूह में घुला मिला।
तुम ही लक्ष्य और तुम ही साध्य बन गए।
हर आराध्य से बड़े प्रेम आराध्य बन गए।
तुम ही मेरे अनब्याहें गीतों के मीत बन गए।
ये इश्क जब से मेरी रूह में घुला मिला।
वापी सा प्रेम स्वर कानों में हर ओर घुला।
नीलगगन भी लागे न जाने क्यों धुला-धुला।
तेरे सानिध्य ने बरसों से जगी अंखियों को दिया सुला।
वीनस जैन
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश