हर ओर तिश्नगी हो तो प्यासा किसे कहें।
दरिया किसे कहें यहाँ सहरा किसे कहें।
बनने की सब फ़िराक में हैँ आफ़ताब पर,
जो जगमगाए रात को तारा किसे कहें।
आँखें हैं चश्मतर मेरी मुद्दत से हमनवा,
आ के मुझे बताओ कि दरिया किसे कहें।
साहिल नहीं करीब तलातुम में हम फँसे,
हमको लगाए पार सफ़ीना किसे कहें।
सब चाहते हैं जिस्म न मतलब है रूह से,
होने लगा है प्यार का सौदा किसे कहें।
हम देखते हैं उनकी ही आँखों से ज़िन्दगी,
उनके सिवा बताओ झरोखा किसे कहें।
जब वक़्त की गुबार उड़ी खो गए सभी,
माज़ी की ‘अनु’ किताब का किस्सा किसे कहें।
–अनीता सिंह”अनु”