रूठी रहेंगी बारिशें ऐसे ही, क्या करोगे तब..

एक रोज़ ‘थक’ जाएंगी आंखें भी, क्या करोगे तब ,

हदें इंतज़ार की भी गुजर जाएंगी, क्या करोगे तब !!

भला “होनी” को कब कैसे कोई रोक सका है क्या ,

समय रफ्ता-रफ्ता गुजर जाएगा, क्या करोगे तब !!

बकाया हैं तुम पे ख्वाहिशें हजार, सपनें भी बेशुमार ,

गर मैं लूं अपना एक-एक हिसाब, क्या करोगे तब !!

बहुत मुश्किलों से संभाले हैं, ये अपने एहसास सभी ,

बिखर जाएं अगर आंधियों में फिर, क्या करोगे तब !!

छलक जाता है क्यों, ये पैमाना आंसुओं का बार-बार‌,

कोशिशों में रोके रुके न ये जज्बात, क्या करोगे तब!! 

यादों के अनगिनत सिक्के जमा हैं मन की गुल्लक में

अगर वक्त ही ये ‘पूंजी’ चुरा ले गया, क्या करोगे तब !!

हां, मेरे सवाल हैं बेहिसाब..तेरे जवाबों की तलाश में ,

एक दिन नहीं करूंगी कोई ‘सवाल’, क्या करोगे तब !!

अच्छा, चलो छोड़ो.. नहीं करती अब शिकायत कोई ,

लेकिन, मन पर लग गई कोई बात, क्या करोगे तब !!

देखो, मौसम धूप, उमस और तपती दोपहरियों का है ,

“मनसी” रूठी रहेंगी बारिशें ऐसे ही, क्या करोगे तब !!

नमिता गुप्ता “मनसी”

मेरठ, उत्तर प्रदेश