—————-
इन दिनों कोई चिट्ठी न पत्री
या यूं कहें
गुजर गये सालों साल
किसी की चिट्ठी मिली
ना ही दस्तक दी डाकिए ने
ना ही सुनी सुरीली आवाज
बाबूजी !ले लो ये अपनी डाक,
अपने रिश्तेदारों ,मित्रों ने
यहां तक साहित्कारों मित्रों ने भी
चिट्ठीयों से कर ली इति श्री
वहाटसअप से कर ली दोस्ती…
ऐसे में स्मरण करता हूं मेरे
साहित्य प्रणेता,राजनेता
बाबूजी के बालसखा
आदरणीय
बालकवि बैरागी जी को,
जिन कि चिट्ठी मेरा पथप्रदर्शक
मार्गदर्शक हुआ करती थी
मैंने चिट्ठी लिखी और उधर से
उनकी चिट्ठी ,मिलते ही आ जाती थी,
बहुत इंतजार रहता था चिट्ठी का
मनासा हो या कहीं भी समय के
साथ अविरल वे चलते थे।
क्या मजाल आपकी चिट्ठी का
वे समय पर ज़बाब न दे सके?
समयबद्धता के वे परिचायक थे,
मोतियों की माला में गूंथा
एक एक सुंदर शब्द
मुझे धन्यधान से
सीचिंत कर देता था।
कुछ न कुछ प्रेरणा,विचार दे जाता था..
मेरी साहित्यिक पाठशाला के
आत्मीय ,पावन ,प्रेरणापुंज, गुरूवर
आज मुझसे बिछुड गये जरूर है
पर मन के चारों कोनों में वे
मुझे उत्सजित करते रहते है
आज भी उनकी चिट्ठीयां
मेरे लिए धरोहर है…
जब भी खाली समय में कभी
विचारों के प्रवाह में शब्दों
की नदी में बहता हूं
उनकी कालजयी रचनाओं के
संग संगअनमोल
चिट्ठीयां बार बार पढ़ता हूं…
वे प्रेरित करती है और साथ ही
सोचने पर मजबूर भी करती है
चिट्ठीयां प्रेम पराग है
जिनमें से फूटता है
अपनत्व भाव का वीर रस
श्रृंगारित होता है समभाव रस…
चिट्ठीयां मात्र लिख देने से
मिट जाती है कलुषता मन की
एक नया सूरज ,नया क्षितिज
खड़ा होता है
आशाओं का
सम्मानों का सामने
सम्बन्धों के शिखर छूते हुए………….
– लाल बहादुर श्रीवास्तव
9425033960