दरवाजा खोलो बाबा”कविता संग्रह अनुभूतियों का महासागर है 

“दरवाजा खोलो बाबा ” कविता संग्रह की  रचनाकार – सुप्रसिध्द लेखिका ,कवियत्री  डॉ.मोनिका शर्मा है l यह इनका  द्वितीय  कविता संग्रह है l अनेक पत्र -पत्रिकाओं में  इनकी रचनाओं का प्रकाशन लगातार होता रहता है l  इनकी रचनाओं में प्रयुक्त शब्दसंयोजन  भावप्रधानता , गहनता एवं सरलता लिए होते हैl  इनका प्रथम काव्य संग्रह “देहरी एक अक्षांश पर” बहुत लोकप्रिय है । इनकी रचनाओं में  परंपरा एवं बदलते परिवेश का मिश्रण बहुत ही  सहजता और सजगता से किया गया है । इस कविता संग्रह को  राजस्थान एवं मालवा की लोककला   

     “मांडना “से सुशोभित कर एक नया आयाम दिया।

 “पिता  ” जैसे गंभीर  विषय को  अपने मनोभावों से  शब्दों  की  अभिव्यक्ति दी है  l इनकी कविता में अंग्रेजी, उर्दू और राजस्थानी बोली के शब्दों  का  प्रयोग बड़ी सतर्कता  से  किया गया  है l ” दरवाजा खोलो ” कविता संग्रह

 चार खंड में है 

प्रथम खंड में “पिता” के मनोभावों को व्यक्त किया है कि वह किस उधेड़ बुन के चलते अपनी भूमिका का भली प्रकार निर्वाह करता है

द्वितीय खंड में पिता  और बेटी  के भावनात्मक पहलू को सुंदरता से

 उल्लेखित किया है।

तृतीय खंड में पुरुष मन ह्रदय के कोनों अंतरो में दबी अनकही अनुभतियों  को शाब्दिक रूप में अभिसिंचित किया है।

एवम चतुर्थ खंड में प्रश्न सम्मान संवेदनाओं के मोर्चे पर अनुत्तरित कुछ सवालों को काव्यात्मक शैली में उकेरा है।

        पुस्तक के शीर्षक  को साकार करती रचनायें काव्य रस के विभिन्न भावों  को समेटे है l इसमें ६४  कवितायें है जिसमे करुणा  और सा माजिक जीवन में महिला पुरुष के  मनोभावों  का  सटीक  चित्रण है l सभी  कवितायें दिल  को छूती है एवं रचनायें अपने आप में सम्पूर्णता लिए है  l इसमें कुछ रचनाये जो अभिव्यक्ति के नये आयाम को छूती है जिनमें ” सनातन यात्री ” जीवन गणित”  , मन का रूदन “मैं हूं ना मेरे बच्चों ” , अदृश्य गृह” , “पिता की दस्तक ” ममता की परिभाषा “, दरवाजा खोलो बाबा  “, “मां की गंध  ”   अदृश्य तारीख  ”  “भयभीत  होते पुरुष”  ” मन की टीस “” भावों का स्थानांतरण”,घरबार”, “क्यों नहीं समझते”कामयाबी की कीमत “आदि प्रमुख है l 

 ”  दरवाजा खोलो बाबा”-शीर्षक कविता एक- मार्मिक अभिव्यक्ति है

मायके में आज भी है बाकी

लाड़ की ठांव

स्नेह की छांव

खटखटायेगी अधिकारपूर्वक नैहर का द्वार

और लगायेगी पुकार दरवाजा खोलो बाबा

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सनातन यात्री शीर्षक में कितनी मार्मिक बात कही _

पिता

ठहरकर फिर  नहींं देखते कभी

गोधूली में गुम होता सूरज,

भोर का चांद

धवल,धूसर,सिंदूरी आभासी रंजीत आसमान का रंग।

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डीठौना शीर्षक  में नेम प्लेट को माध्यम बना कर लिखा कि-

घर के द्वार पर टंगी 

पिता के नाम की तख्ती

होती है डिठौने सी

घर संसार को बुरी नजर से बचाती

द्वार पर दस्तक देने से पहले ही

हर संकट को लौटाती ।

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“मैं हूँ ना मेरे बच्चों ” शीर्षक में रचनाकार ने पिता के होने 

के मायने को दर्शाया है 

समेटते रहते स्वयं को 

कि विस्तार पा सके बच्चों का व्यक्तित्व

करते रहते अनुसंधान

कि सुरक्षित रहे नई पीढ़ी का अस्तित्व।

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ममता की  परिभाषा 

पिता

जब मां बनते है 

ममता की नई परिभाषा गढ़ते है।

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“भयभीत होते है पुरुष भी” शीर्षक

स्त्रियां ही नहीं 

पुरुष भी लौटते है घर

दबे पांव

ठहर जाती है उनकी भी सांसे

रात -बिरात घर के द्वार पर दस्तक देने से पहले

आंखो मे उतर आता है भय – भीति

और प्रश्नों की बौछार से बढ़ जाती है 

मन  की व्यग्रता।

नन्ही बिटिया से भी कम नहीं डरता

उनका ममता बोध 

कि देर रात लौटे बाबा की पदचाप से 

कहीं खुल ना जाये

लाडली की नींद।

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“मनोभावों की शिराएं “शीर्षक से

खूब कमाने के बदले

अकेलापन, ऊब  और उदासी भी होती है जमा

कमेरे बेटों के बैंक खातों में।

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पलायन की पीड़ा शीर्षक से

गंगा के किनारे बैठा कोई श्रमिक

विवशता के दर्पण में

दूर बैठा देखता है प्रतिबिम्ब

गरबे की थिरकन और दस्तक देते दीपपर्व की सजधज का।

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पिता पर लिखा यह कविता संग्रह 

पिता की भावना  को बेटी ने शोधपरख संग्रह बना दिया।

       रचनाऍ पठनीय तो है ही सराहनीय व प्रेरणादायी भी  है , काव्य संग्रह अपने आप में पूर्णता लिए हुए है संग्रह के मूल्‍यांकन का अधिकार तो पाठकों को है l लेखिका ने चंद्र बिंदुओ का उपयोग अतिरेक किया है ।                                           

 समीक्षा द्वारा  — संजय जोशी ” सजग “

कृति -”  ” दरवाजा खोलो बाबा “

 विधा -कविता

रचनाकार  डॉ,.मोनिका शर्मा

प्रकाशक – श्वेतवर्ण प्रकाशन दिल्ली

मुल्य – 149 . 00 रूपये