कफन में दलाली खाय!

शुचितापुरी नामक नगरी में दयाकृष्ण नामक एक सहृदयी चोर निवास करता था। वह ईमानदार किंतु अत्यंत दरिद्र किस्म का चोर था। वह छोटी चोरियां किया करता, इसलिए वह छोटा चोर था। किसी घर से साइकिल चुरा लेना या बीड़ी का बंडल पार कर किसी दूसरे को बेच देने जैसे लघु किस्म के चोर्य कर्म किया करता। महंगाई के कारण दयाकृष्ण भारी विपत्ति में आ गया। लोग घर में जाने कब सोते थे और जाने कब जागते थे। सोने-जागने का न सरकार को पता होता, न ही जनता को! ऐसी विकट अवस्था में दयाकृष्ण अपनी गृहस्थी नहीं चला सका। वह समीप ही श्मशान में जलते शव के साथ जल कर आत्महत्या करने का उपाय विचार कर अपने घर से निकल गया। कुछ दूर चलने के बाद श्मशान में जैसे ही प्रवेश करने लगा उसकी नजर एक दलाल पर पड़ गई। इसी नगरी में धर्मचंद्र नामक यशस्वी दलाल रहा करता था। वह संकट काल में सिर्फ 20 गुना ही दलाल दक्षिणा प्राप्त किया करता। पहले वह बड़े-बड़े पुल-सड़कादि शाही कार्यों से दलाल दक्षिणा प्राप्त कर अपना जीवन प्रेम पूर्वक संचालित किया करता था। लेकिन कोरोना काल में उसे ये सुअवसर मिलने बंद हो गए। तब धर्मचंद्र औषध मंत्रालय के लिए उपयोग में लिए जाने वाले यंत्रों-औषधियों आदि की पवित्र दलाली करने लग गया। आज एक शव ने धर्मचंद्र के साथ धोखा किया था। उस शव को लगाए गए पेरासिटामोल नामक सूचिकाभरण (इंजेक्शन) की 80 हजार रुपए की राशि बकाया थी। धर्मचंद्र को उस शव से यही सब वसूलना था। 

अवसर समझकर दानवीर दलाल धर्मचंद्र ने दयाकृष्ण को कहा- हे मित्र! इस समय तुम कहां जा रहे हो? तब दयाकृष्ण ने अपनी सारी कहानी सुना, कोरोना शव के साथ अपनी देह त्यागने की इच्छा जताई। धर्मचंद्र ने कहा- हे मित्र! शास्त्रों में कहा गया है कि चतुर, चालबाज, सयाने जीव आत्महत्या नहीं करते बल्कि दूसरों को आत्महत्या के लिए तत्पर कर देते हैं। शास्त्रों में यह भी कहा गया है- असली धर्म दलाल का, अर्थ है अर्थ कमाय। मरे पीछे प्रलय हुआ, कफन में दलाली खाय। धर्मचंद्र के श्रीमुख से ऐसे पावन विचार सुनकर दयाकृष्ण हाथ जोड़े, दलाल-कर्म की संपूर्ण व्याख्या सुनने के लिए शीतलता से आग्रह करने लगा। पुण्यात्मा धर्मचंद्र ने चंद क्षणों में ही समस्त दलाल महिमा का व्याख्यान कह सुनाया। दयाकृष्ण ने अत्यंत गदगद होकर दलाल कर्म में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अपना हस्त धर्मचंद्र के हस्त में विलीन कर दिया। तत्क्षण श्मशान की खेजड़ी पीछे छिपे एक पुलिस अधिकारी ने यह दृश्य अपने दिव्य नेत्रों से देख लिया। जब दयाकृष्ण को यह सब पता लगा, तो वह डर के मारे इस तरह कांपने लगा जैसे कोई नेता दान-धर्म का काम करते हुए कांपता है। उसे कंपन अवस्था में देखकर धर्मचंद्र ने कहा- हे मित्र! संकट काल में इस तरह से कंपन करना व्यर्थ है। यह पुलिस अधिकारी भी एक परम दलाल किस्म का अत्यंत धार्मिक प्राणी है। अत: हे चोर्य कर्म श्रेष्ठिजन! इसे अपना मित्र ही मानो। तत्क्षण तीनों ही एक दूसरे की ओर देख मुस्कुराने लगे। श्मशान में उत्तर क्रियाकांक्षी कई शव पंक्ति बद्ध हो कर रोने लगे। मंत्री ने चमचे को यह कथा सुनाकर हर्ष पूर्वक अपना कमीशन ले लिया।

— रामविलास जांगिड़,18, उत्तम नगर, घूघरा, अजमेर  (305023) राजस्थान मो 94136 01939