नई दिल्ली । ज्ञानवापी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से सुनवाई के दौरान तीन बड़े सुझाव सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से शिवलिंग मिलने के दावे वाली जगह को सुरक्षित किया जाए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कहा गया है कि मुस्लिमों को नमाज पढ़ने से न रोका जाए। पुलिस प्रशासन को देखना होगा कि कितनी संख्या में वहां पर जा सकते हैं। तीसरी बड़ी बात कोर्ट की ओर से कही गई है, कि मामला कॉम्पलैक्स हैं, वाराणसी में ही कोर्ट में ही मामला सुना जाए।
सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ की ओर से कहा गया है कि जो जिला जज न्यायिक अधिकारी होते हैं। जिला जज को हम निर्देश नहीं दे सकते हैं। कमीशन की रिपोर्ट को कैसे डील करना है। अदालतें को उसी मामले की सुनवाई करनी चाहिए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जिला जज अपने हिसाब से सुनवाई करें।
वहीं शुक्रवार को सुनवाई से पहले हिंदू पक्षकारों की तरफ से 278 पन्नों का विस्तृत हलफनामा दिया गया है। जिसमें कहा गया है कि ज्ञानवापी का मामला उपासना स्थल कानून 1991 के दायरे में नहीं आता है, क्योंकि ये 15 अगस्त 1947 को किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति को लेकर है। जबकि ज्ञानवापी परिसर में स्थित देवी श्रृंगार गौरी की उपासना, पूजा और दर्शन पिछली सदी के आखिरी दशक तक हो रही थी। अदालत पहले धार्मिक स्थलों की स्थिति के सवालों पर पहले सुनवाई करे। फिर उसके कैरेक्टर और स्थिति की समीक्षा हो।
वहीं इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सुनवाई छह जुलाई तक के लिए टाल दी। वाराणसी के अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने सुनवाई की अगली तारीख छह जुलाई तय की। उल्लेखनीय है कि मूल वाद वर्ष 1991 में वाराणसी की जिला अदालत में दायर किया गया था, जिसमें वाराणसी में जहां ज्ञानवापी मस्जिद मौजूद है, वहां प्राचीन मंदिर बहाल करने की मांग की गई थी। वाराणसी की अदालत ने आठ अप्रैल, 2021 को पांच सदस्यीय समिति गठित कर सदियों पुरानी ज्ञानवापी मस्जिद का समग्र भौतिक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ताओं ने आठ अप्रैल के इस आदेश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में यह कहकर चुनौती दी कि वाराणसी की अदालत का यह आदेश अवैध और उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर का है। याचिका में कहा गया कि वाराणसी की अदालत में यह विवाद सुनवाई योग्य है या नहीं, यह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में विचाराधीन है।