भक्ति भाव से सजे संगीतमय संध्या ज्योतिर्गमय -“स्प्रिचुअल सिंफनी”में सुप्रसिद्धगायिका मनीषा ए अग्रवाल सहित 108 कलाकारों ने अपने सुरों और संगीत से श्रोताओं और दर्शकों को भक्तिभाव से परिपूर्ण संगीत के सागर में डुबोया

नई दिल्ली । विश्व संगीत दिवस के अवसर पर अर्पण फाउंडेशन के संस्थापक और ट्रस्टी मनीषा ए. अग्रवाल ने मंगलवार की शाम को कमानी ऑडिटोरियम में भक्ति संगीत के सुरों से लबरेज एक अनोखी शाम “स्प्रिचुअल सिंफनी” का आयोजन किया। भारत सरकार के संस्कृति और पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी ने संगीतमय समारोह का उद्घाटन किया। भक्ति संगीत में डूबी इस संगीतमय शाम को “आजादी के अमृत महोत्सव” और संगीत नाटक अकादमी के “ज्योर्तिगमय” के तहत पेश किया गया। इस अवसर पर 108 पर्दे के पीछे संगीत कलाकारों, पंडितो और अन्य साजिंदों की भक्ति भावना से परिपूर्ण संगीत, धुनों और आलाप की मधुर गूंज पूरे माहौल में महसूस की गई। इस मौके पर पद्मभूषण पंडित विश्व मोहन भट्ट, पदमश्री अनूप जलोटा, मनीषा ए. अग्रवाल, पदमश्री अनवर खान और रवि पवार ने संगीतमय सुरों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस अवसर पर मनीषा ए. अग्रवाल ने कहा, “संगीत सार्वभौमिक रूप से लोगों को एकीकृत करने वाली शक्ति है। मैं संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय की आभारी हूं, जिन्होंने संगीत के माध्यम से भारत के एकात्मवादी स्वरूप का जश्न मनाने का हमें मौका दिया।“ उन्होंने कहा, “इस कार्यक्रम को “आजादी के अमृत महोत्सव” का जश्न मनाने के लिए खासतौर से संवारा गया था। इस संगीतमय कार्यक्रम में श्लोक, मंत्र, विश्वास और भजन को बेहतरीन ढंग से पिरोया गया था, जिससे प्रेम, सद्भावना, आंतरिक जागृति और आजादी की झलक मिली। यह समारोह विशेष रूप से आजादी के अमृत महोत्सव का जश्न मनाने के लिए आयोजित किया गया था। यह संगीतमय समारोह से भारत के आध्यात्मिक संगीत के विकास की 5 श्रेणियों की झलक मिली। ओंकार से ओम तक का सफर मानवीय चेतना की 4 अवस्थाओं की झलक देता है, जिसमें जागृतावस्था, स्वप्नावस्था, स्वप्नहीन गहराई और अंत में समाधि होती है। सामवेद के श्लोकों का गायन (सामवेज से शास्त्रीय संगीत तक) का इस भक्ति परंपरा में विलय हो गया है, जो सूफी संगीत की खोज में यात्रा करते हुए सूफी फकीरों के संगीत तक पहुंचता है। इससे भक्ति संगीत के सभी स्वरूपों का एकात्मकवाद में विलय होता है। भक्ति संगीत में डूबे इस संगीतमय समारोह में सभी धर्मों की प्रार्थनाओं को शामिल किया। समारोह के अंत में राष्ट्रवाद और देशभक्ति से परिपूर्ण सुर भी इस समारोह में गूंजे।
पंडित विश्व मोहन भट्ट ने कहा, “मैं राष्ट्रीय एकता और विश्व शांति को बढ़ावा देने वाले संगीतमय आयोजन का हिस्सा बनकर काफी प्रसन्न हूं। यह अपने आप में एक अनोखा आयोजन है क्योंकि इस समारोह ने सबसे आदिम ध्वनि ओम से सामवेद में मूल संगीत की उत्पत्ति की खोज की गई। इस संगीत समारोह में संगीत की सबसे प्राचीन प्राकृतिक ध्वनि भी गूंजी। इस समारोह की परिणिति भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोकसंगीत के मधुर स्वरों के साथ हुई।“ पद्मश्री अनूप जलोटा ने कहा, “इस समारोह में भारतीय संगीत की विभिन्न पद्धतियों की झलक देखने को मिली। भारतीय शास्त्रीय संगीत, लोकसंगीत और भक्ति परंपरा से संबंधित सामवेद के पुरोहितों ने एक साथ संपूर्ण भक्तिभाव से परमात्मा की स्तुति की। समारोह में उपस्थित श्रोताओं और दर्शकों को भक्तिभाव से उत्पन्न होने वाली धुनों से बड़ा मनमोहक और दैवीय अनुभव मिला। इस संगीत समारोह में निश्चित रूप से प्रार्थना का शक्ति को फिर से स्थापित किया गया।“
भक्ति भाव से परिपूर्ण इस आध्यात्मिक समारोह के संगीतकार और संचालक रवि पवार ने कहा, “यह अपनी तरह का अनोखा भक्तिभाव से परिपूर्ण संगीत समारोह है, जिसके आयोजन से पहले भारतीय संगीत की उत्पत्ति और विकास के क्षेत्र में काफी गहरा शोध किया गया।“
भक्ति संगीत के आध्यात्मिक समारोह में विभिन्न वाद्य यंत्रों का वादन किया गया। कलाकारों ने कोरस में भी भक्ति संगीत गाया। इस अवसर पर श्रोताओं ने विभिन्न वाद्य यंत्रों, वॉयलिन, सेलो, गिटार, सितार, बांसुरी, ड्रम, संतूर, अलगोजा, रावणहत्था, खड़ताल, इलेक्ट्रिक वॉयलिन, ऑक्टोपैड और तबला वादन का आनंद किया। भक्ति भाव से सजे संगीत समारोह में कई भक्तिभाव से परिपूर्ण रचनाएं पेश की गई। इसमें सामवेद के श्लोक, गायत्री मंत्र, केसरिया बालम, तान, आज ब्रिज में होली, मान कुंतो, सर्वे भवंतु, बुद्धम शरणं, निराशावादी स्थिति और अंधेरे में परमात्मा की ओर से राह दिखाने पर गायन, एक ओंकार आदि भक्तिपूर्ण रचनाओं को पेश किया गया। इस समारोह का अंत भारत मां के गायन, मां भारती, के साथ किया गया।