मुझे लगता है
मैं नींद मे सोया हुआ हूँ
गहरी नींद में!
मेरे वाण ,धनुष,ढाल सब छितराये हुए हैं
आस-पास।
एक निवेदन फड़फड़ा रहा है हवा में
हे महाबलियो!मुझे सोने दो
तुमने मुझे हमेशा घेर कर रखा है
इस युद्ध से उस युद्ध तक
कभी मौका ही नहीं दिया
मैं थक गया हूँ,बहुत थक गया हूँ।
मुझे नहीं चाहिए राज -सिंहासन
नहीं चाहिए ऐश्वर्य्य का कोई साम्राज्य
भोग-उपभोग या और कुछ!
नही,जीत-हार का तो कोई प्रश्न ही नहीं है
नहीं ,पराभव का भी कोई भय नहीं है मुझे
अब तक तो जीतता ही रहा हूँ मैं।
पर अब इस स्वार्थ समर से
खुद निकल आया हूँ बाहर।
क्या सिर्फ हार से टूटता है आदमी
जीत से नहीं?
इतिहास के पार्श्व में
सिसकती हुई यह अंतर्ध्वनि
किसकी है ?किसकी है यह
खुद से रुन्धी हुई अकथ वेदना!
कितनी आत्म -छवियों के
अन्तर्ध्वंस का गवाह मैं।
आँखों में चमकती हुई शमशीर-सी
अश्वारोहियों की अधीर उत्तेजना!
लहू की टपकती धार
आँसू की नदी में!
हे महाबलियो आगे बढ़ो!
लौटकर तो आओगे ही
जब आओ,
अगर मैं जीवित रहा
तो,मिलना मुझसे!
बताना अपना अनुभव!
बैठना मेरे पास
कहना कि मैं थक गया हूँ
थक ही जाता है आदमी।
संजय कुमार सिंह
सम्प्रति- प्रिंसिपल, पूर्णिया महिला काॅलेज पूर्णिया-854301
9431867283