सिसकते पेड़ रोती धरती
सभ्यता नष्ट होते जाती
कटते पेड़, होती धरती बंजर
सभ्यता का दिखता अस्थि-पंजर
सूर्यदेव क्रोधित अग्नि बरसाते
बादल बेमौसम आते और जाते
मानव भूला – गंतव्य का रास्ता
कुदरत नष्ट करना-लगता सस्ता
क्या होगा इस धरती का हाल?
सोच कर मन होता है बेहाल
रह जाएगा केवल धरा पर धूल
कहाँ से मिलेंगे फल और फूल?
हमें मिलेगी कहाँ से छाया?
प्रकृति क्यों नहीं लेती किराया?
कैसे प्राप्त होगा जल-प्राणवायु?
जीव क्यों बन रहा अल्पायु?
क्यों न बंद हो भीषण विध्वंस?
कैसे रुके बर्बादी यह नृशंस?
जीव क्यों न करता योग-उद्योग?
कैसे हो प्रकृति का उचित उपयोग?
मानव क्यों न बात समझता?
पैरों पर क्यों कुल्हाड़ी मारता?
आनंद मोहन मिश्र
विवेकानंद केंद्र विद्यालय यजाली
लोअर सुबनसिरी जनपद
अरुणाचल प्रदेश
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