लिखो कोई गीत
जीवन के लिए
रचो कोई गीत
भजन के लिए
करो योग ध्यान
मेनन के लिए
शहादत की संजीवनी
तुमको दी थी
नहीं वह गरल था
वतन के लिए
श्रद्धा की समिधा
है नहीं पास जिनके
वे लाते लकड़ियां
हवन के लिए
हिमालय हो तुम तो
नहीं सिर्फ पत्थर
निकालो कोई गंगा
अमन के लिए
यही चाह मेरी
उठे जब यह जनाजा
मिले यह तिरंगा
कफन के लिए
●डॉ.योगिता जोशी ‘अनुप्रिया’
झोटवाड़ा, जयपुर (राजस्थान)