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अपने प्यारे गाँव से, बस है यही सवाल ।
बूढा पीपल है कहाँ, कहाँ गई चौपाल ।।
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रही नहीं चौपाल में, पहले जैसी बात ।
नस्लें शहरी हो गई, बदल गई देहात ।।
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जब से आई गाँव में, ये शहरी सौगात ।
मेड़ करे ना खेत से, आपस में अब बात ।।
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चिठ्ठी लाई गाँव से, जब यादों के फूल ।
अपनेपन में खो गया, शहर गया मैं भूल ।।
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शहरी होती जिंदगी, बदल रहा है गाँव ।
धरती बंजर हो गई, टिके मशीनी पाँव ।।
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गलियां सभी उदास हैं, पनघट हैं सब मौन ।
शहर गए उस गाँव को, वापस लाये कौन ।।
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बदल गया तकरार में, अपनेपन का गाँव ।
उलझ रहे हर आंगना, फूट-कलह के पाँव ।।
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पत्थर होता गाँव अब, हर पल करे पुकार ।
लौटा दो फिर से मुझे, खपरैला आकार ।।
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खत आया जब गाँव से, ले माँ का सन्देश ।
पढ़कर आंखें भर गई, बदल गया वो देश ।।
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लौटा बरसों बाद मैं, बचपन के उस गाँव ।
नहीं रही थी अब जहाँ, बूढ़ी पीपल छाँव ।।
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— सत्यवान ‘सौरभ’,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045