यह मौन कभी चीत्कार करेगा,
सूने शून्य में हाहाकार भरेगा।
पददलितों की पीड़ा के आंसू,
मृत्तिका में रक्तबीज बो रहे,
संज्ञाहीन वंचितों की व्यथा से,
शीर्षबिंदू पर वो निशंक सो रहे,
अव्यक्त है जो ह्दय में कंटक
वही क्रांति-पुष्प साकार करेगा,
यह मौन कभी चीत्कार करेगा….
स्वेद-बूंदे कृषकों, श्रमिकों की,
धनिकों की मुक्ता- मालाएं बनीं,
क्षुधातुरों के उदर हैं हुए रिक्त,
तृप्तों की अंगुरिया जूठन से सनीं,
किसी भूखे के हिस्से का अन्न,
बन अस्त्र कभी प्रतिकार करेगा,
यह मौन कभी चीत्कार करेगा….
स्वर से स्वर जुड़ बनेगा गर्जन,
भीष्म नाद पर होगा तांडव,
कर्णभेदी तब होंगी दिशाएं,
थमेगा खगों का मीठा कलरव,
शोषित नेपथ्य से मंच पर आकर,
नायक का रूप अंगीकार करेगा,
यह मौन कभी चीत्कार करेगा…
-रजनीश तिवारी,
MIG-149,
समतानगर, विशाखापट्टनम
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