नई दिल्ली । भाजपा के सबसे मजबूत गढ़ गुजरात में इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव देश की भावी राजनीति की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। यहां पर भाजपा को फ़िलहाल कोई बड़ी चुनौती मिलती नहीं दिख रही है, लेकिन यह चुनाव नतीजों से ज्यादा विपक्ष की राजनीति को प्रभावित करेंगे, क्योंकि राज्य में कमजोर कांग्रेस पर आम आदमी पार्टी भारी पड़ सकती है। विपक्ष की बड़ी चुनौती न होने के बाद भी भाजपा नेतृत्व ने बीते साल राज्य की पूरी सरकार को बदल कर साफ कर दिया था कि वह सरकार विरोधी माहौल को कतई आगे नहीं बढ़ने देना चाहती है। पांच साल पहले राज्य के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी थी और 1995 के बाद से पहली बार भाजपा की सीटें 100 से कम आई थी। हालांकि वह स्पष्ट बहुमत हासिल कर सरकार बनाने में सफल रही थी। हालांकि बीते पांच साल में कांग्रेस राज्य में बेहद कमजोर हुई है। उसके बड़े नेता अहमद पटेल के निधन के बाद सबको बांधने वाला नेतृत्व भी राज्य में नहीं रहा। कई विधायक भी पाला बदलकर भाजपा के साथ चले गए और हार्दिक पटेल जैसा युवा नेता भी उसका साथ छोड़ गया। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस की इन्हीं कमजोरियों को देखते हुए राज्य में अपनी जमीन बनानी शुरू कर दी। जातीय समीकरणों को साधने के साथ भाजपा के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल कर खुद को विकल्प बताने की कोशिश की है। राज्य में आम आदमी पार्टी ने 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे महज 0.1 फीसद वोट ही मिले थे और सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी। हालांकि 2021 में सूरत नगर निगम के चुनाव से उसने राज्य में अपनी पहचान बनानी शुरू की। सूरत की 120 में आम आदमी पार्टी ने 27 सीटें जीतकर कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया और मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। भाजपा नेतृत्व को इस बात का भी एहसास है कि कांग्रेस की कमजोरी आम आदमी पार्टी की ताकत बन सकती है। गौरतलब है कि गुजरात में 1995 से लगातार भाजपा सत्ता में है। उसने लगातार पांच विधानसभा चुनाव जीते हैं। इसमें नरेंद्र मोदी खुद 12 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। बीते 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 99 सीटें जीतकर अपनी सरकार बरकरार रखी थी, जबकि कांग्रेस ने कड़ी चुनौती देते हुए 77 सीटें जीती थी। भारत ट्राइबल पार्टी को दो और राकांपा को 1 सीट मिली थी, जबकि तीन निर्दलीय जीते थे।