:: गीता भवन के संस्थापक बाबा बालमुकुंद की 40वीं पुण्यतिथि पर प्रवचन एवं पुष्पांजलि ::
इन्दौर । शास्त्र, धर्म और अध्यात्म तो भारत भूमि की मिट्टी में रचे-बसे हुए हैँ। यहां की हवा-पानी में भी अध्यात्म की खुशबू मिली हुई है। धर्म और संस्कृति के अभाव में मनुष्य सही ढंग से जीवन नहीं जी सकता। हमारे यहां ऋषि परम्परा और गुरूकुल पद्धति रही है। यही कारण है कि जितने संत-विद्वान और ऋषि-मुनि भारत भूमि पर हुए हैं, उतने दुनिया के किसी भी अन्य देश में नहीं हुए। धर्म और अध्यात्म के अभाव में मनुष्य पशुता की ओर बढ़ता है।
ये प्रेरक विचार हैं रामकृष्ण मिशन उज्जैन के वरिष्ठ सन्यासी स्वामी राघवेन्द्रानंद महाराज के जो उन्होंने आज गीता भवन के संस्थापक बाबा बालमुकुंद की 40वीं पुण्यतिथि पर आयोजित प्रवचन एवं दीपांजलि-पुष्पांजलि समारोह में व्यक्त किए। रामकृष्ण मिशन इन्दौर के सचिव स्वामी निर्विकारानंद ने भी अपने प्रभावी विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, कोषाध्य़क्ष मनोहर बाहेती, महेशचंद्र शास्त्री, दिनेश मित्तल, प्रेमचंद गोयल, सोमनाथ कोहली, हरीश माहेश्वरी, टीकमचंद गर्ग, राजेश गर्ग, पवन सिंघानिया, सत्संग समिति के जे.पी. फड़िया आदि ने संतद्वय के सानिध्य में बाबा बालमुकुंद के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलन किया।
‘आध्यात्मिक जीवन, क्यों और कैसे ?’ विषय पर संतद्वय ने प्रेरक विचार रखे। दोनों ने गीता भवन के संस्थापक बाबा बालमुकुंद के सेवाकार्यो का पुण्य स्मरण करते हुए कहा कि आज गीता भवन की ख्याति सारे देश में तीर्थ स्थल के रूप में बनी हुई है। यहां हर वर्ष गीता जयंती महोत्सव में देश के जाने-माने संत-विद्वान आकर इस अंचल के भक्तों को घर बैठे गंगा स्नान की अनुभूति कराते हैं। भीकनगांव के भागवताचार्य पं. पीयूष पांडे ने भी विचार रखे। संचालन राम ऐरन एवं रामविलास राठी ने किया। प्रवचन के बाद समारोह में मौजूद सैकड़ों भक्तों ने गीता भवन के पीछे स्थित बाबा बालमुकुंद की समाधि पर पहुंचकर पुष्पांजलि समर्पित की।