विश्व में हिन्दू जीवन शैली ही सर्वश्रेष्ठ : अवधेशानंदजी –

:: प्रभु प्रेमी संघ के तत्वावधान में बास्केटबाल काम्प्लेक्स में ‘चले दिव्य जीवन की ओर’ विषय पर प्रेरक उद्बोधन ::
इन्दौर । दिव्यता हमारा स्वभाव भी है और निजता भी। दिव्यता की ओर जाने का मतलब अपनी मूल प्रवृत्ति और अस्तित्व की ओर चलना है। युवा जब आगे आता है तो क्रांति होती है और देश तथा दुनिया आगे बढ़ते हैं। विदेशी विश्वविद्यालयों ने हाल ही में एक शोध करने के बाद यह तथ्य प्रतिपादित किया है कि दुनिया में सबसे श्रेष्ठ जीवनशैली यदि कोई है तो वह है हिन्दू जीवन शैली। हम हर नर में नारायण देखते हैं। ज्ञान हमें निर्भय बनाता है। शांति और सफलता की ओर ज्ञान ही ले जाएगा। हमारे युवा सत्यान्वेषी बनें। जिसने सत्य को अनुभूत किया है या उसका अन्वेषण कर रहा है, उसका वह श्रम उसे दिव्यता की ओर ले जाता है। हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि हम किसी से न डरेंगे न और किसी को डराएंगे। हम नचिकेता और सावित्री के वंशज हैं। भरत शेर के दांत गिना करते थे और उन्हीं के नाम पर देश का नाम भारत है। डर किसी चीज को खोने का होता है, लेकिन ज्ञान यह सिखाता है कि आपका कभी कुछ घटेगा नहीं, कुछ खोएगा नहीं।
देश के प्रख्यात संत, आचार्य महामंडलेश्वर जूना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने आज शाम बास्केटबाल काम्प्लेक्स पर प्रभु प्रेमी संघ के तत्वावधान में आयोजित ‘चलें दिव्यता जीवन की ओर ’ विषय पर अपने प्रेरक, धारा प्रवाह और ओजस्वी उद्बोधन में उक्त बातें कहीं। प्रारंभ में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने प्रभु प्रेमी संघ के अध्यक्ष सुशील बेरीवाला, राजसिंह गौड़, राधेश्याम श्रोत्रिय के साथ दीप प्रज्ज्वलन कर इस प्रवचन माला का शुभारंभ किया। कार्यक्रम में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, सांसद शंकर लालवानी, जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, विधायक मालिनी गौड़, रमेश मेंदोला, समाजसेवी पुरुषोत्तम अग्रवाल सहित बड़ी संख्या में शहर के धार्मिक-सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि एवं पदाधिकारी उपस्थित थे। बास्केट बाल परिसर में उपस्थित सभी श्रोताओं की ओर से बालिका निहिकासिंह ने पुष्प गुच्छ भेंटकर स्वामीजी का स्वागत किया, वहीं प्रभु प्रेमी संघ की ओर से सुशील बेरीवाला एवं राजसिंह गौड़ ने केशरिया शाल पहनाकर उनका अभिनंदन किया। संचालन सुगंधा बेहरे ने किया। प्रवचन सुनने के लिए स्कूल-कालेजों के छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
स्वामी अवधेशानंद ने कहा कि इन्दौर से मेरा बहुत पुराना नाता है। मैं 35 वर्ष पूर्व पहली बार इन्दौर आया था। यह विशिष्ट और उत्सवप्रिय शहर है। उत्सव में एक रस होता है। एक होता है ब्रह्मरस – हमें उसी ब्रह्मरस की ओर बढ़ना है। शास्त्रों में सभी धर्मग्रंथों का सम्मान है। हर विचार का स्वागत होना चाहिए। शास्त्र कहते हैं जो जिस वस्तु का स्वभाव है, वही उसका धर्म है। सभी देव कहते हैं अपने मूल पर जाएं। जब हम किसी वस्तु के स्वभाव को पहचान लेते हैं तो उसी के अनुरूप व्यवहार करते हैं। जब व्यक्ति अपने मूल में जाता है तो कोई भी क्लेश और दैन्यता नहीं होती।
सभागृह में उपस्थित छात्र-छात्राओं से मुखातिब होते हुए उन्होंने कहा – हमें पावर फुल बनने से ज्यादा सामर्थ्यवान बनना होगा। सशक्त और समर्थ बनने से हम हर स्थित और परिस्थिति में शांत रहकर कभी विचलित नहीं होते। आपको पावरफुल भी होना है। अपना देश अर्थ व्यवस्था में पूरे विश्व में पांचवें पायदान पर पहुंच गया है। प्रधानमंत्री कहते हैं हम किसी से न डरेंगे, न किसी को डराएंगे। हम नचिकेता और सावित्री के वंशज हैं, जो यमराज से भी लड़कर अपने पति को जिंदा करा सकती है। हमारे भरत शेर के दांत गिनते थे और उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारत है। डर किसी चीज को खोने का होता है, लेकिन ज्ञान यह सिखाता है कि आपका कभी कुछ घटेगा नहीं, कुछ खोएगा नहीं। ज्ञान आपको निर्भय बनाता है। शांति और सफलता की ओर ले जाता है। बच्चों को सत्यान्वेषी बनना चाहिए। सत्तर के दशक में एक शब्द आया था – मूड खराब है, फिर एक शब्द आया बहुत बिजी हैं, फिर आया बड़ा स्ट्रेस है। हम भारतीय तो ऋषियों की संतान हैं, हमारा मूड या बिजीनेस या स्ट्रेस से कोई लेना देना ही नहीं है। पश्चिमी संस्कृति के लोगों ने हमें सोशल एनिमल बल्कि पूरी मानव जाति को ही जानवर कहा है पर हम वो लोग हैं, जिन्होंने एनिमल में भी परमात्मा देखा है। हम हर नर में नारायण देखते हैं। पश्चिमी लोगों ने यह भी कहा था कि भारतीय दिखते तो मनुष्य जैसे हैं, लेकिन हैं पशु। अलबत्ता, जब पश्चिम के लोग धरती पर भी नहीं आए थे, तभी भारत ने दशमलव से लेकर आत्मा तक अनेक बातों से जगत को परिचित करा दिया था। हमारी भारत माता परमात्मा का बेटा पैदा नहीं करती, बल्कि खुद परमात्मा पैदा करती है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो ईश्वर के जान लेता है, वह भी ईश्वर हो जाता है और गुरू भी चेला नहीं, बल्कि गुरू ही बनाता है। एकात्म दर्शन भारत का दर्शन है। दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय और एकात्मक मानववाद का विचार वेदों से निकलकर आया है, किसी उपन्यास से नहीं। दिव्य जीवन का अर्थ है अपनी अस्मिता की ओर जाना। हम तो देवताओँ की संतान हैं। यदि ईश्वर को देखना है तो वह हमेशा निर्धन और निर्बल के पास मिलेगा।
स्वामीजी ने बच्चों का आव्हान किया कि वे ऐसे निर्धन और निर्बल लोगों को सशक्त और मजबूत करें। विदेशी विश्वविद्यालयों ने हाल ही में शोध किया है कि बिना किसी राजनीति, कूटनीति, छल, कपट और प्रपंच अथवा बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के किस देश की जीवनशैली श्रेष्ठ है तो उसका निष्कर्ष यही निकला है कि हिन्दू जीवनशैली ही सर्वश्रेष्ठ है। हमारे प्रधानमंत्री जिस साफ्ट पावर शब्द का प्रयोग करते हैं उसके तहत हमारे योग एवं आयुर्वेद ने पूरे विश्व में अपना लोहा मनवा लिया है। हिन्दू वैदिक सनातन संस्कृति से संसार के सारे सजग विचारगक चौंक गए हैं, क्योंकि हमारी संस्कृति बहुत वैज्ञानिक संस्कृति है। खास बात यह है कि यह हमारे स्वभाव में है। युवा जब आगे बढ़ता है तो क्रांति होती है और देश और दुनिया भी आगे बढ़ते हैं। आज राष्ट्र को इसी भाव की जरूरत है। इस अवसर पर अभिभाषक संघ के पूर्व अध्यक्ष रवीन्द्रसिंह गौड़, लोकेन्द्रसिंह राठौड़, पूर्व पार्षद सुधीर देड़गे, अग्रवाल समाज केन्द्रीय समित के अध्यक्ष राजेश बंसल सहित बड़ी संख्या में विशिष्टजन उपस्थित थे।