दुर्घटना के मामले में मृतक की ‘दूसरी पत्नी और बच्चे’ भी मुआवजे के हकदार : कर्नाटक हाईकोर्ट

बेंगलुरु । कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि दूसरी पत्नी और उसके बच्चों को भी आश्रित माना जाना चाहिए और वे दुर्घटना के मामले में मुआवजे के हकदार हैं। न्यायमूर्ति बी वीरप्पा और न्यायमूर्ति केएस हेमलेखा की खंडपीठ ने जयश्री बनाम चोलामंडलम मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए यह फैसला सुनाया।
इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि कानूनी प्रतिनिधित्व में कोई भी व्यक्ति शामिल हो सकता है, जो मृतक की संपत्ति में हस्तक्षेप रखता है और ऐसे व्यक्ति का कानूनी उत्तराधिकारी होना जरूरी नहीं है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि मौजूदा मामले में, मृतक की पहली पत्नी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि दावेदार (दूसरी पत्नी और उसका बच्चा) मृतक के आश्रित हैं। जब पहली पत्नी मृतक के साथ दूसरी पत्नी के संबंध पर विवाद नहीं करती है और इस तथ्य को देखते हुए कि दावेदार एक साथ रह रहे थे और मृतक पर निर्भर थे, वे मुआवजे के हकदार हैं। पीठ ने अपीलकर्ता बेंगलुरु मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (बीएमटीसी) को मृतक जी पट्टाभिरामन के परिवार के सदस्यों, पहली पत्नी और उसके 2 बच्चों के साथ-साथ दूसरी पत्नी और उसके बच्चे को ब्याज सहित 73.6 लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया। उल्लेखनीय है कि जी पट्टाभिरामन की 12 जुलाई, 2015 को एक सड़क हादसे में उस समय मृत्यु हो गई थी, जब बेगुर मेन रोड पर होंगसांद्रा में बीएमटीसी की एक बस ने उनकी बाइक को टक्कर मार दी थी।
इसके बाद, मृतक के परिवार ने एक ट्रिब्यूनल का रुख किया और बीएमटीसी से मुआवजे के रूप में 1 करोड़ रुपए की मांग की। परिजनों ने तर्क दिया कि बीएमटीसी चालक द्वारा तेज गति और लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण उन्होंने अपना कमाने वाला सदस्य खो दिया है। इस दावे पर विचार करते हुए ट्रिब्यूनल ने बीएमटीसी को 9 फीसदी ब्याज के साथ 79.1 लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया। बीएमटीसी ने फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि मृतक की गलती की वजह से वह हादसे का शिकार हुआ था। एक अन्य तर्क यह था कि मृतक के परिवार में केवल 3 सदस्य उस पर आश्रित थे- पहली पत्नी और 2 बच्चे। न कि दूसरी पत्नी और दूसरा पुत्र।