जीवन समझकर प्रसन्न होते

हम जीवन में यथार्थ को पकड़ते, 

उसे द्वंद्व के साथ पूरा करते, 

समग्र में देखने का प्रयास करते, 

ऐसा बार-बार करने की कोशिश करते, 

‘है’ और ‘था’ के बीच के बीच झूलते, 

इसी तरह जीवन में कष्ट उठाते

आनंद और मनोरंजन में भी सोचते रहते। 

 सृजन और स्वप्न में भी त्रस्त रहते 

इतिहास के अभाव में-स्मृति खोजते, 

भविष्य के अभाव में आनंद तलाशते 

वर्तमान में कल्पना की महत्त्वपूर्ण 

भूमि बंजर बनाने लगते।

सपनों में आवाजाही करते, 

नींद वाले सपने तो देखते , 

खुली आंखों के और बंद आंखों के सपने जागते। 

भ्रम और स्वप्न का द्वंद्व समझ नही पाते

इसी को जीवन कहकर प्रसन्न होते।

आनंद मोहन मिश्र

विवेकानंद केंद्र विद्यालय यजाली

लोअर सुबनसिरी जनपद

अरुणाचल प्रदेश

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