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नींद नहीं आ रही
लोरी फिर से सुना दो मां
कितना बदनसीब हूॅं मैं
अपने साथ रख नहीं पाया मां
मजबूरी मेरी देखिए गा
रो नही सका तेरी गोद में मां
याद आते हैं दिन बचपन के
कितना सताता था तुम्हें मां
जिद्द पूरी न कर पाने पर
कितना रोती थी कमरे में तू मां
अच्छा लगता था वह दिन
डांट कर जब गाली देती थी मां
भूख न होने का बहाना बना कर
भर पेट हमें खिला जाती थी मां
मिट्टी कीचड से सन कर आने पर
मल मल कर हमें नहलाती थी मां
रमेश कुमार संतोष
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