*****************
ग़रीबों का पेट –
भूख़ की सत्ता ।
चूल्हों की आग –
अब कहां खो गई ?
उनकी छाती –
अब ठंडी हो गई ।
रोटियों के पेड़ –
हिले न पत्ता ।
भुख़मरों का शहर –
भूख़ बदहवाश ।
भुख़मरी का सफ़र –
आदमी हताश ।
रोटियां दिखाएं –
पेट को धत्ता ।
धनवानों की –
ये रखैल रही है ।
ग़रीब ने केवल –
भूख़ ही सही है ।
भूख़ को तनख़्वाह –
ना उसे भत्ता ।
महल में रोटियां –
रोज़ गंधाएं ।
महल को रोटियां –
कब यहां भाएं ।
बदन पर थिगड़ैल –
फटा हर लत्ता ।
+ अशोक आनन +
मक्सी