गीत गुनगुनाएं

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मत रुको क़लम कुछ लिखना है ——- 

आग उदर की तन के कपड़े ,

हर पग के छाले लिखना है ,

मत रुको क़लम कुछ लिखना है ——-

दर्द हिमालय का लिखना है लिखना पीर गंगन की ,

छूटा धैर्य धरा का  लिखना  झूँठी  प्रीति  मदन की ,

कांप रहा  छप्पर  लिखना है रोती  नींव  सदन की ,

टूट  रहा विश्वास मित्र का  केवल तपन  अगन की ,

बहक रहे दो अधर नीति के ,

कंपित वह स्वर लिखना है ,

मत रुको क़लम कुछ लिखना है ——–

सूख रहीं गुलशन  की कलियाँ व्यथा  यही लिखना है ,

झुलस रही जीवन की गलियाँ कसक सही लिखना है ,

धूमिल  चाँद  सितारे  उड़गन  बुझे  दीप  लिखना  है ,

तिमिर  छिपा  पारे  के  भीतर  कहर  वही लिखना है ,

ज़हर  घूँटना  घूँट – घूँट  पर , 

जलता हर तन-मन लिखना है ,

मत रुको क़लम कुछ लिखना है ——–

पनप रहा विद्वैष लिखें कुछ सिसक रही मानवता ,

अट्टहास  चहुँओर  कर  रहा लिखनी वह दानवता ,

जारी  जंग  लिखूँ  रोटी  पर हँस-हँस बोटी  हनंता ,

बहा  रही  आँखों  से  आँसू बिलख रही ये जनता ,

लिखना प्रात: का अंधियारा  ,

यह  तपती  रैना  लिखना है ,

मत रुको क़लम कुछ लिखना है ——-

सागर की बौराहट लिखना किया मृदुल जल खारा ,

लिखूँ पिघलती बर्फ प्रेम की बहती कुछ जल धारा ,

निकल रही दिल की आहों से फ़ौलादी  खुद  हारा ,

हम   बदलेंगे   युग  बदलेगा  लगा  ज़ोर  से  नारा ,

लिखना”सजल”जीत अपनों की ,

कुछ रोना – गाना लिखना है ,

मत रुको क़लम कुछ लिखना है ——–

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रामकरण साहू “सजल” बबेरू (बाँदा) उoप्र०

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