” शिकायतों के बाद भी चुनाव आयोग के अफसरों को जानकारी क्यों नही ?,
करोड़ों लीटर शराब का अवैधानिक तरीके से निर्माण “
भोपाल/इंदौर ।(राजेन्द्र के.गुप्ता ) छोटे – छोटे शराब तस्कर जो 30, 40, 50, 60 लीटर या इस मात्रा की शराब अवैधानिक तरीके से रख कर विक्रय कर रहे है उन्हें चुनाव आयोग के आदेश पर पुलिस और आबकारी विभाग पकड़ रहा है । पर शिकायत के बाद भी इन जैसे छोटे शराब तस्करों तक अवैधानिक तरीके से करोड़ों लीटर शराब का निर्माण कर पहुचाने वाले बड़े तस्करों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नही की जा रही है ? क्या यह आश्चर्य में डालने वाली बात नही है कि प्रदेश और चुनाव आयोग के क़ाबिल अफसरों को इसकी जानकारी नही है ? अर्थात क्या अवैधानिक रूप से शराब का निर्माण और सप्लाय करने वाले बड़े सोर्स को रोकना ही नही चाहते है ? क्या रिकार्ड बनाने और भय बनाने के लिए छोटे-छोटे तस्करों के विरुद्ध दिखावे की कार्यवाही की जा रही है ? सूत्रों के अनुसार प्रदेश में संचालिक शराब की कुछ ईकाइयों में अनुमति और क्षमता से अधिक शराब का निर्माण किया जा रहा है ,वो भी ज़िम्मेदारों की निगरानी में । है ना आश्चर्य पर आश्चर्य !! क्योंकि जिन शराब निर्माण ईकाइयों में ऐसा किया जा रहा है वहा ऐसा करने से रोकने के लिए विभाग के अफसरों की तैनाती अर्थात ड्यूटी भी है ! कुछ शराब ईकाइयों के संचालकों ने अधिक शराब निर्माण करने के लिए शराब निर्माण क्षमता बढ़ाने की अनुमति प्राप्त करने के लिए विभाग को आवेदन दिए है । उनमे से कुछ ने अनुमति मिले बिना नई मशीने भी लगा दी । अब आप समझ सकते इतनी रिस्क लेकर पुरानी के साथ करोड़ों रूपयों की नई मशीनों को देखने भर के लिए तो नही लगाया होगा ?! नई मशीनों को लगाने के लिए नई बिल्डिंग बनाने में भी करोड़ों ख़र्च किए होगे ? नई मशीने भी चल ही रही होगी ? वर्ना बिजली का बिल और पानी सहित अन्य सामग्री का उपयोग इतना कैसे बढ़ जाता ? भले नियम नही है पर ज़िम्मेदार इसे नई मशीनों का ट्रायल भी कह कर बच सकते है ….! आपकी जानकारी के लिए बता दे नियमानुसार नई मशीनें भी तभी लगाई जा सकती है जब विभाग के मंत्रालय सहित सभी से अनुमतियाँ मिल गई हो…ख़बर अभी जारी है क्योंकि शिकायतों पर मंत्रालय में बैठे ग़ैरज़िम्मेदार अफसर चुनाव आयोग को मौक़ा रिपोर्ट की बजाए तथ्यहीन टेबल रिपोर्ट भेज रहे है ।दूसरी तरफ शिकायतकर्ता आर.के.गुप्ता का फलोअप जारी है…. रिपोर्ट देने वाले मंत्रालय के बड़े अफसर शिकायतकर्ता के काम से वाकिफ है इसलिए वो अपने आप को बचा कर अपने से छोटे अफसर से कलम का उपयोग करवा रहे है…..अब सबसे बड़ा सवाल यह भी उठता है शिकायतों पर बिना मौका रिपोर्ट और साक्ष्य के वाणिज्यिक कर मंत्रालय से मिल रहे तथ्यहीन टेबल प्रतिवेदन के बाद भी चुनाव आयोग के अफसरों को इसकी जानकारी क्यों नही है ? या वो इसे समझना भी नही चाहते है ? जागते और जगाते रहो…..