काठमांडु । नेपाल में 5 दलों के सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर आने के बाद सीपीएन-माओवादी सेंटर के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड को देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। पिछले माह हुए आम चुनावों में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिल पाने के कारण देश में जारी अनिश्चितता का वातावरण के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद समाप्त हो गया।
यह आश्चर्यजनक घटनाक्रम भारत और नेपाल के बीच संबंधों की दृष्टि से अच्छा नहीं है क्योंकि क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर प्रचंड और उनके मुख्य समर्थक केपी शर्मा ओली के रिश्ते पहले से ही नयी दिल्ली के साथ कुछ बेहतर नहीं हैं। राष्ट्रपति कार्यालय से यहां जारी एक बयान के अनुसार 68 वर्षीय प्रचंड को संविधान के अनुच्छेद 76(2) के अनुसार देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है।
राष्ट्रपति ने प्रतिनिधि सभा के वैसे किसी भी सदस्य को प्रधानमंत्री पद का दावा पेश करने के लिए आमंत्रित किया था जो संविधान के अनुच्छेद 76(2) में निर्धारित दो या दो से अधिक दलों के समर्थन से बहुमत प्राप्त कर सकता हो। प्रचंड ने राष्ट्रपति द्वारा दी गई समय सीमा के समाप्त होने से पहले सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत किया था।
अनुच्छेद 76(2) के तहत गठबंधन सरकार बनाने के लिए राजनीतिक दलों को राष्ट्रपति द्वारा दी गई समय सीमा समाप्त हो रही थी। राष्ट्रपति कार्यालय के अनुसार नवनियुक्त प्रधानमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह सोमवार शाम 4 बजे होगा। सूत्रों ने बताया कि प्रचंड सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) के अध्यक्ष रवि लामिछाने राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के प्रमुख राजेंद्र लिंगडेन सहित अन्य शीर्ष नेताओं के साथ राष्ट्रपति कार्यालय गये और सरकार बनाने का दावा पेश किया था।
केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाले सीपीएन-यूएमएल सीपीएन-एमसी राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) और अन्य छोटे दलों की एक महत्वपूर्ण बैठक यहां हुई जिसमें सभी दल प्रचंड के नेतृत्व में सरकार बनाने पर सहमत हुए। प्रचंड को 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 168 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है जिनमें सीपीएन-यूएमएल के 78 सीपीएन-एमसी के 32 आरएसपी के 20 आरपीपी के 14 जेएसपी के 12 जनमत के 6 नागरिक तथा 3 निर्दलीय शामिल हैं।
तीसरी बार नेपाल का प्रधानमंत्री नियुक्त प्रचंड को चीन का समर्थक माना जाता है। प्रचंड ने अतीत में कहा था कि नेपाल में बदले हुए परिदृश्य के आधार पर और 1950 की मैत्री संधि में संशोधन तथा कालापानी एवं सुस्ता सीमा विवादों को हल करने जैसे सभी बकाया मुद्दों के समाधान के बाद भारत के साथ एक नयी समझ विकसित करने की आवश्यकता है।
भारत व नेपाल के बीच 1950 की शांति और मित्रता संधि दोनों देशों के बीच विशेष संबंधों का आधार बनाती है। हालांकि प्रचंड ने हाल के वर्षों में कहा था कि भारत और नेपाल को द्विपक्षीय सहयोग की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए इतिहास में अनिर्णित कुछ मुद्दों का कूटनीतिक रूप से समाधान किये जाने की आवश्यकता है। उनके मुख्य समर्थक ओली भी चीन समर्थक रुख के लिए जाने जाते हैं। प्रधानमंत्री के रूप में ओली ने पिछले साल दावा किया था कि सामरिक रूप से महत्वपूर्ण तीन क्षेत्रों- लिपुलेख कालापानी और लिंपियाधुरा क्षेत्रों- को नेपाल के राजनीतिक मानचित्र में शामिल करने के कारण उन्हें सत्ता से बाहर किये जाने का प्रयास हुआ था।
इस विवादित मानचित्र के कारण दोनों देशों के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हो गये थे। लिपुलेख कालापानी और लिंपियाधुरा क्षेत्र भारत का हिस्सा हैं। भारत ने 2020 में नेपाली संसद द्वारा नए राजनीतिक मानचित्र को मंजूरी देने के बाद पड़ोसी देश के इस कदम को अरक्षणीय करार दिया था। नेपाल 5 भारतीय राज्यों -सिक्किम पश्चिम बंगाल बिहार यूपी और उत्तराखंड के साथ 1850 किलोमीटर से अधिक की सीमा साझा करता है।
किसी बंदरगाह की गैर-मौजूदगी वाला पड़ोसी देश नेपाल माल और सेवाओं के परिवहन के लिए भारत पर बहुत अधिक निर्भर करता है। नेपाल की समुद्र तक पहुंच भारत के माध्यम से है और यह अपनी जरूरतों की चीजों का एक बड़ा हिस्सा भारत से और इसके माध्यम से आयात करता है। ग्यारह दिसंबर 1954 को पोखरा के निकट कास्की जिले के धिकुरपोखरी में जन्मे प्रचंड करीब 13 साल तक भूमिगत रहे।
उन्होंने 1996 से 2006 तक सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व किया था जो अंततः नवंबर 2006 में व्यापक शांति समझौते पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हुआ। इससे पहले ओली के आवास बालकोट पर बैठक आयोजित हुई जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री ओली के अलावा प्रचंड तथा अन्य छोटे दलों के नेताओं ने प्रचंड के नेतृत्व में सरकार बनाने पर सहमति जताई। प्रचंड और ओली के बीच बारी-बारी से सरकार का नेतृत्व करने के लिए सहमति बनी है।
शंकर पोखरेल ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा था चूंकि सबसे बड़ी पार्टी के रूप में नेपाली कांग्रेस राष्ट्रपति की ओर से दी गई समय सीमा के भीतर संविधान के अनुच्छेद 76(2) के अनुसार अपने नेतृत्व में सरकार बनाने में विफल रही इसलिए अब सीपीएन-यूएमएल ने 165 सांसदों के समर्थन से प्रचंड के नेतृत्व में नयी सरकार बनायी है।
सुबह प्रधानमंत्री एवं नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और सीपीएन-एमसी के बीच सत्ता-साझेदारी पर सहमति न बन पाने के बाद प्रचंड 5 दलों के गठबंधन से बाहर आ गये थे क्योंकि देउबा ने 5 वर्षीय कार्यकाल के पूर्वार्द्ध में प्रधानमंत्री बनने की प्रचंड की शर्त खारिज कर दी थी। देउबा और प्रचंड पहले बारी-बारी से नयी सरकार का नेतृत्व करने के लिए मौन सहमति पर पहुंचे थे। माओवादी सूत्रों ने बताया कि सुबह प्रचंड के साथ बातचीत के दौरान नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों प्रमुख पदों के लिए दावा किया था जिसे प्रचंड ने खारिज कर दिया था।
नेपाली कांग्रेस ने माओवादी पार्टी को अध्यक्ष पद की पेशकश की जिसे प्रचंड ने खारिज कर दिया। इससे पहले दिन के पूर्वार्द्ध में सीपीएन-एमसी के सचिव गणेश शाह ने कहा अब गठबंधन टूट गया है क्योंकि देउबा और प्रचंड के बीच अंतिम समय में हुई बातचीत बेनतीजा रही है।
नेपाल की प्रतिनिधिसभा में 89 सीट के साथ नेपाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है जबकि सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-एमसी के पास क्रमश: 78 और 32 सीट हैं। प्रचंड के अलावा जनता समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र यादव राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के अध्यक्ष राजेंद्र लिंगडेन और राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के अध्यक्ष रवि लामिछाने भी संयुक्त बैठक में भाग लेने के लिए ओली के आवास पर पहुंचे थे।
निचले सदन प्रतिनिधिसभा के लिए हुए चुनाव में नवगठित राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) को 20 राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी को 14 जनता समाजवादी पार्टी (जेएसपी) को 12 और जनमत पार्टी को 6 सीट मिली हैं। सीपीएन के पास 10 सीट हैं लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के पास 4 और नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के पास तीन सीट हैं।
नेपाल के निचले सदन में 5 निर्दलीय सदस्य हैं। 7 दलों का नया गठबंधन सभी सात प्रांतों में भी सरकार बनाने की ओर अग्रसर होता दिख रहा है। इस बीच सीपीएन-मसल के महासचिव मोहन बिक्रम सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के लिए सीपीएन-यूएमएल के साथ गठबंधन करने को लेकर प्रचंड की आलोचना की है।