समाज को मर्यादा और शालीनता में बांधे हुए हैं भारतीय विवाह संस्कार

इन्दौर । ज्ञान और भक्ति ऐसे अनमोल खजाने हैं जिन्हें कोई चुरा नहीं सकता। सोना चांदी और पैसा तो चुराया जा सकता है। मनुष्य जीवन परमात्मा की ओर से हमें दिया गया सर्वश्रेष्ठ उपहार है। अपनी जिम्मेदारियों से पलायन करना कतई उचित नहीं है। समाज में कंस प्रवृत्ति द्वापर युग में भी थी और आज भी है। कंस अभिमान का प्रतीक है। हम सब भी किसी न किसी कारण से कई बार अभिमानी बन जाते हैं लेकिन याद रखें कि अभिमान में आकर किसी का अपमान नहीं करें। रुक्मणी विवाह भगवान का नारी के प्रति मंगल भाव का सूचक है। भारतीय संस्कृति में विवाह ही वह व्यवस्था है जो समाज को मर्यादा और शालीनता में बांधे हुए है।
ये दिव्य विचार हैं श्रीधाम वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के जो उन्होंने आज पाटीदार समाज एवं घाटीवाला परिवार द्वारा खजराना स्थित पीपल चौक पर आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ में रुक्मणी विवाह प्रसंग के दौरान व्यक्त किए। कथा में जैसे ही कृष्ण और रुक्मणी ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई समूचा पांडाल बधाई गीत और भगवान के जयघोष से गूंज उठा। कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी प्रेमचंद गोयल विधायक विपिन वानखेड़े श्याम अग्रवाल मोमबत्ती थाना प्रभारी दिनेश वर्मा नगर निगम के जेडओ उमेश पाटीदार हरिनारायण पाटीदार संतोष कमल पाटीदार चंदू रावल संजय कटारिया राजेश पाटीदार दिलीप पाटीदार आशाराम पाटीदार डॉ. रामविलास गौर बाबूलाल माधव पुरुषोत्तम रापड़िया रतनलाल दूधिया आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संध्या को आरती में संजय नीमवाले योगेश गामी गजानंद सुले राधेश्याम होलीवाले सुरेश धीमान निलेश पाटीदार प्रहलाद मंडले गोपीलाल कोदरिया बलराम काका आदि ने भाग लिया। साध्वी कृष्णानंद ने आज अपने रास गीत से समूचे पांडाल को थिरकाए रखा। उनके भजन पहले दिन से ही भक्तों को भाव विभोर किए हुए हैं। संयोजक अनिल पाटीदार ने बताया कि कथा में गुरुवार 29 दिसम्बर को दोपहर 1 से 4 बजे तक कथा सुदामा चरित्र प्रसंग के बाद फूलों की होली के साथ समापन होगा।
महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने कहा कि हम सबसे ज्यादा धनवान परमात्मा है। यह धन जरूरतमंद लोगों को देने के लिए ही है लेकिन क्या कभी हमने चिंतन किया है कि हमारे पास जो धन है वह हमने कितने पात्र लोगों को दिया है। धन का सबसे बड़ा सदुपयोग यही है कि वह जरूरतमंद लोगों की आंखों के आंसू पोंछने के काम आए। जीवन में दया करुणा और परमार्थ जैसे गुण होना चाहिए। परमात्मा अक्रूर अर्थात जो क्रूर नहीं है उन्हीं को मिलते हैं। समाज में कंस की प्रवृत्ति तब भी थी और आज भी है। दुष्ट व्यक्ति कभी भी कहीं भी हो सकते हैं। रुक्मणी का विवाह भगवान के मन में नारी के प्रति मंगलभाव का सूचक है। हमारी भारतीय विवाह पद्धति सारी दुनिया में सबसे श्रेष्ठ मानी गई है अन्यथा पश्चिमी देशों में तो विवाह सात दिन और सात माह में ही टूट जाते हैं।