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बैठी हूँ लेकर कोरा पन्ना
जिसमें बिखेरना चाहती हूँ
स्याही कलम की
जिसका हर शब्द
जज्बातों से भरा हो
जो हुबहु मेरे अहसासों से
मेल खाता हो
छल कपट से कोसों दूर
कुछ अपने साथ
वक़्त बिताना चाहती हूँ
जिसका हर लफ्ज पारदर्शी हो
ऐसे ही कुछ मसले मेरे
जिनको हल कर
अपने शब्दों को
स्याह से रंगना चाहती हूँ
देखना चाहती हूँ खुद को
उन शब्दों में
जो मेरी कल्पना नहीं
हकीकत से वास्ता रखते हैं
जो छोड़ रहे हैं छाप मेरी
कोरे पन्ने पर बन के
स्याही कलम की !!
● मेघना वीरवाल
गाडरियावास, आकोला
चित्तौड़गढ़, (राजस्थान)
पिन -312205