धूप   का   सफ़र 

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दिनमान कभी थकता नहीं है ।

धूप  का सफ़र रुकता नहीं है ।

मौसम कभी मुफ़लिसों के नाम –

ख़त ख़ैरियत के लिखता नहीं है ।

झोपड़ियों में अब ठहरा हुआ –

सुकूं कहीं भी दिखता नहीं है ।

बीच समुन्दर कोई सफ़ीना –

लहरों से अब लड़ता नहीं है ।

ख़िज़ां के दिनों में बहारों का –

प्रश्न कोई भी उठता नहीं है ।

आश्वासनों की आज हवा से –

पेट ग़रीब का भरता नहीं है ।

आसमान के कम्बल से कभी –

बदन नंगों का ढंकता नहीं है ।

 + अशोक आनन +

     मक्सी