राज्यसभा के सभापति धनखड़ के एक फैसले पर विवाद, विरोध दल ने इस पूरी तरह गलत बताया

नई दिल्ली । राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के एक फैसले पर विवाद खड़ा हो गया है। उपराष्ट्रपति ने अपने निजी स्टाफ के आठ सदस्यों को राज्यसभासचिवालय के दायरे में आने वाली 20 समितियों में नियुक्त किया है। इसमें उपराष्ट्रपति सचिवालय में तैनात चार कर्मचारी भी शामिल हैं। आमतौर पर राज्यसभा सचिवालय के अधिकारी संसदीय समितियों की सहायता करते हैं और समिति सचिवालयों का हिस्सा भी बनते हैं। विपक्षी दलों ने इस फैसले पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट कर कहा कि यह पूरी तरह से अवैध और उपराष्ट्रपति की ओर से अधिकारों का दुरुपयोग है। कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने कहा कि ऐसा कभी नहीं हुआ है और इस फैसले को लेकर दिया गया स्पष्टीकरण भी अनुचित है। उन्होंने सवाल किया कि क्या यह राज्यसभा के चेयरमैन का अपने सचिवालय के मौजूदा स्टाफ में भरोसे की कमी को नहीं दर्शाता है? कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि उप-सभापति की तरह वह सदन के सदस्य नहीं है। इसके बाद उपराष्ट्रपति संसदीय समितियों में अपने पर्सनल स्टाफ को कैसे नियुक्त कर सकते हैं?
उपराष्ट्रपति के स्टाफ से समितियों में अटैच हुए अधिकारी हैं-ओएसडी राजेश एन नाईक, निजी सचिव सुजीत कुमार, अतिरिक्त निजी सचिव संजय वर्मा और ओएसडी अभ्युदय सिंह शेखावत। राज्यसभा चेयरमैन के ऑफिस से नियुक्त अधिकारी हैं-ओएसडी अनिल चौधरी, दिनेश डी, कौस्तुभ सुधाकर और पीएस अदिति चौधरी। मंगलवार को इस बाबत आदेश जारी कर बताया गया कि इन अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से समितियों में नियुक्त किया जाता है।
ये अधिकारी समितियों को उनके कामकाज में सहयोग करने वाले हैं, जिसमें ऐसी बैठकें भी हैं जो गोपनीय प्रकृति की होती हैं। उधर, लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी ने कहा कि संसदीय समतियों की परिभाषा के अनुसार, केवल सांसद और राज्यसभा या लोकसभा सचिवालयों के स्टाफर ही ऐसी भूमिका निभा सकते हैं।
आचारी ने कहा, ऐसा कोई नियम नहीं है, जिसके तहत स्पीकर या चेयरमैन अपने पर्सनल स्टाफ को समितियों की सहायता के लिए नियुक्त करें। संसदीय समिति की परिभाषा बिल्कुल स्पष्ट है कि उसमें केवल सदस्य (सांसद) और लोकसभा या राज्यसभा सचिवालय के अधिकारी ही हो सकते हैं। स्पीकर या चेयरमैन के निजी स्टाफर संसदीय सचिवालयों का हिस्सा नहीं हैं। अब तक ऐसी कोई नियुक्ति नहीं की गई थी।