■ चित्र के गर्भ में….

एक चित्र नुमाइश में था लगाया गया,

कुछ ऐसा वाक़या था दिखाया गया।

एक वृद्ध अपने हाथों में लाठी लिए हुए,

सिर पे रखे था पोटली टाँके सिए हुए।

थे ज़ख़्म जर्जर तन पे रिस रहा था ख़ून भी,

चेहरे पे साफ़ दिखता था छाया जुनून भी।

पैरों के नीचे रेत थी और सामने मरुभूमि थी,

चेहरे पे वेदना थी और निगाहें सूनी-सूनी थीं।

सूरज भी ऊपर से बिखेरता था अंगारे,

वो वृद्ध टिका हुआ था लाठी के सहारे।

उस चित्र के नीचे लिखा था नाम कुछ नहीं,

ना नाम कलाकार का और दाम कुछ नहीं।

सब लोग चित्र देख के चुपचाप खड़े थे,

आशय मगर उस चित्र का वे समझे नहीं थे।

उस चित्र ने दिमाग़ पे जादू सा कर दिया,

कुछ देर को गुमसुम सा वहाँ मैं खड़ा रहा।

बस कुछ ही क्षणों बाद मैं सब कुछ समझ गया,

आगे बढ़ा फिर बुद्धिजीवियों से ये कहा।

इस चित्र का मैं पूरा अर्थ जान गया हूँ,

ये वृद्ध कौन है इसे पहचान गया हूँ।

मैं आपको हर दृश्य का आशय बताऊँगा,

फिर अंत में इस वृद्ध से परिचय कराऊँगा।

अब ध्यान दें के सुन लें सभी मेरा ये बयान,

इस चित्र का हर एक दृश्य कर रहा बखान।

सूरज है राजनीति की गर्मी लुटा रहा,

जो भ्रष्टाचार के है अंगारे गिरा रहा।

सिर पे रखी है प्रजातंत्र रूपी पोटली,

मंहगाई भूख शोषण के टाँकों से है सिली।

इस पोटली में बन्द है जो कर्ज़ बढ़ रहा,         

  इस कर्ज़ से दबा ये वृद्ध लस्त पड़ रहा।       

जो रिस रहा है लहू वो बेटों की देन है,

अपना भविष्य जान के इसको न चैन है।

चेहरे पे छाई वेदना है दिल को दुखाती,

हाथों की लाठी ग़ैरों की हमदर्दी जताती।

जिसने किया कमज़ोर की उसने ये भलाई,

बेटों को छीन हाथ में इक लाठी थमाई।।

इस वृद्ध की किस्मत को किसने फोड़ दिया है?

घुट-घुट के मरने मरुस्थल में छोड़ दिया है।

हाथों की सूखी लकड़ी जब भी छूट जाएगी,

इस वृद्ध की काया उसी दिन टूट जाएगी।

ये सत्य है बयान इसे मान जाइए,

ये वृद्ध हिंदुस्तान है पहचान जाइए।।

             ■प्रणय प्रभात■

            श्योपुर (मध्यप्रदेश)