आत्म संवाद……..

आत्म संवाद इक औरत का…

क्या मुझमें एक भी ऐसा गुण नहीं कि

मैं किसी की अच्छी दोस्त बन सकूँ…

और देखो न…

मैं अभी तक यही मानती आई कि-

मैं कुछ हूँ, न हूँ..

पर..एक अच्छी इंसान ज़रूर हूँ ,

मानवीयता से भरी…

हमेशा दिलो-जान से हर रिश्ता निभाती आई हूँ,

इस बात पर बड़ा गर्व भी है मुझे…

अच्छी बेटी हूँ, बहन हूँ, पत्नी हूँ

साथ ही माँ भी ,

कितने किरदार निभाती हूँ,

इक पुरुष संग सहजता से..

पर मित्रता के खाँचे में समा पाती नहीं कभी….

क्यूं मित्रता का प्रारंभ स्त्री पुरुष से इतर हो

होकर भी क्यों बरकरार नहीं रह पाता

वो संतुलन , वो निश्चिंत पन, वो बेबाक पन….

क्यूं पीछे हटा लेने पड़ते हैं क़दम……..

काफ़ी साथ चलने के बाद …..

का मेरी मित्रता की परिभाषा

जेंडर से तय होती है / निभती है ??

आख़िर एक औरत होना ही

क्यूँ भारी पड़ जाता है,

मेरे हर गुण पर…

फिर

चाहेगा कौन ?

इस रूप में दुबारा धरती पर उतरना..

प्रश्न है इस समाज से ….. .

नीना जैन लाइफ कोच दूरदर्शन एंकर