बदल रहे है खुद को गिरगिट की तरह
मुकर रहे हैं बातों से करवट की तरह
मुफलिसों के आहें और आंसुओं से दूर
वो पड़े हैं गद्दी पे पुराने सलवट की तरह
जरूरत रही तो रहे हम हीरे से कीमती
वक्त ढला बने कूड़ा करकट की तरह
रिश्तों में बसी खुदगर्जी से बनें तन्हा
भरी धूप में सूने सूने पनघट की तरह
दिलों में नफरत औ जुबां में मिठास
जिंदगी चल रही है मिलावट की तरह
डॉ टी महादेव राव
विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)