भूख, भय, मृत्यु और ममता

भक्ष्ण नहीं करूंगा

मैं तो फिर भूखा मरूंगा

-सामने मेरे जो भी आए

उससे अपना पेट भरूंगा।

ये कोई दिव्यांग नहीं

तकदीर का मारा है

शक्ति का प्रतीक है

जंगल का राजा दुलारा है।

सोचा अपने ख्यालों की पीड़ा मे

शक्ति किसी को,

शक्तिशाली बनाने मे

ना की बलात उसे चबाने मे

पालने वाला निर्बल बना,

क्या ख्याल है जमाने मे ?

माँ की ममता जीत गई

मौत से भी भिड़ती गई

भय उसका क्या बिगाड़ता

जब माँ कर्तव्य पर बढ़ती गई।

बेखबर नामसमझ,

उसे ज्यादा भाव का ज्ञान नहीं

माँ से जब लिपटा है

उसे मौत की भी परवाह नहीं ।

क्या वह व्याध नहीं जानता होगा ?

यह मुझसे भी हिम्मत वाले है

मैं तो इनके प्राण हर रहा हूँ,

ये मुझको पालने वाले है।

ऐसे व्याध एक नहीं

हजारो है समाज मे.

स्फूर्तिसे अपना शिकार बनाते

ना डरे है कल मे,

न आज मे।

सारा समाज डर रहा है।

भूख प्यास दया. ममता

झोली मे एक भर रहा है।

पाश्चात्य की छाव, मे

भटक-भटक कर तड़प रहा है।

लाल सिंह वर्मा

जिला सिरमौर

हिमाचल प्रदेश 8219984645