रावण अब जीत रहा है —

मुरदे करते राजनीति, जनता सोई तमाम  

रावण अब जीत रहा है, हार रहा है राम

संसद में बोली लगे, परिषद भी बदनाम

हर दल की चमड़ी बिके, ऊंचे चाहिए दाम॥

सरकार बनाना ओर गिराना बेगैरतों का काम  

खुले बाजार नीलामी हुई हरिशचंद बताते नाम ॥

इज्जत गई मुखौटा उतरा जनता जागी तमाम

शराफतचंद ने जेबे काटी ऐंठ रहा गुलफाम ॥ 

 अब रंग राजनीति के कैसे कैसे हुये दोस्तों  

खूनी हुये है रंग फिर भी सफेदी देखो

दहलीज़ लांघकर जो नेता चला गया

वह खुद तमाशा बन गया अब देखो ॥

उतरन पहन तलाशता रहा खुद को

बदल गया साया शक्ल कैसी हुई देखों  

आईना देख बदहबास हुआ पत्थर सा

खुद की आंच से पिघला बदन अब देखों ॥  

मुकद्दर आवारा होकर रूठ गया जालिम

छोटे कद का आदमी कैसे जिंदा है देखों

खुशमिजाज़ था ताज था उसके सिर पर

गुम हुआ यही पर उसकी परछाई देखों ॥

सत्ता का यह कैसा नशा पोती कालिख

आसमान छूती बुलंदी जमींदोज हुई देखों

मिट गयी है लकीरे किस्मत हुई जख्मी भी

महाराज की निष्ठा में बने विभीषण देखो ॥

तमन्नाओ में रंग भरने का गज़ब ढंग तेरा

न घर के न घाट के कैसे धोबी के हुये देखो

पीव गिरगिट सा रंग बदलकर ख्वाब कैसा

उडी नींद जागते सपने तबीयत खराब देखो ॥

आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार

श्रीजगन्‍नाथधाम, काली मंदिर के पीछे, ग्‍वालटोली

नर्मदापुरम मध्‍यप्रदेश मोबाईल 9993376616