इंदौर (कृष्णचन्द्र दुबे) भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा में मान्यता दी गई थी। इसकी पहली रूपरेखा 1921 में पिंगली वेंकैया ने तैयार की थी। साल 1906 से 1947 तक हमारे राष्ट्रीय ध्वज में काफी बदलाव आए हैं। अशोक चक्र वाले इस वर्तमान के झंडे के राष्ट्रीय ध्वज बनने की कहानी बहुत लंबी है। भारत का पहला झंडा 1906 में अस्तित्व में आया था। इस झंडे में तीन रंग हरा, पीला और लाल रंग की पट्टियां देखने को मिलती है। इसमें बीच में वन्देमातरम लिखा हुआ था। फिर 1907 में मैडम कामा और उनके कुछ क्रांतिकारी साथियों ने नया झंडा फहराया यह झंडा भी देखने में काफी हद तक पहले जैसा ही था. इसमें केसरिया, पीले और हरे रंग की पट्टियां थी, बीच में वन्दे मातरम् लिखा था। साल 1917 में जब राजनीतिक संघर्ष ने एक नया मोड़ लिया तब तीसरा झंडा आया। फिर 1921 में दो रंगों वाला झंडा बनाया गया था, इसी के बीच एक महत्वपूर्ण झंडा और है जिसका जिक्र कहीं पर नहीं है, यह वो झंडा है जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी में भारतीय रीजन बनाने के बाद फहराया था। जिसमें लाल-हरे रंग की पट्टिया मौजूद थी । 1931 में ध्वज को केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ, मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे का साथ मिला। इसके बाद अशोक चक्र का सफर आता है। ये साल 1947 था, जिसमें सावरकर ने चरखे के झंडे वाली कमेटी को एक टेलीग्राम भेजा था. उन्होंने कहा था कि तिरंगे के मध्य में अशोक चक्र होना चाहिए और आखिरकार 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे आजाद भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया जो विशाल और मजबूत भारत का गौरव है और रहेगा ।