अपने हॉकी करियर को लेकर संतुष्ट है रानी

एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा खुलता है
नई दिल्ली । आजकल भारतीय जूनियर टीम को कोचिंग दे रही भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान रानी रामपाल ने कहा है कि वह अपने करियर को लेकर संतुष्ट हैं। रानी के अनुसार उन्हें जो भी अवसर मिले हैं। उन्होंने उनका पूरा इस्तेमाल किया है। रानी की कप्तानी में भारतीय टीम ने टोक्यो ओलंपिक खेलों में चौथा स्थान हासिल किया था।
रानी ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘अब मुझे किसी बात का कोई दुख नहीं है, मुझे पता है कि मैंने अपना काम कर दिया है और अब भी कर रही हूं। जीवन में अगर एक दरवाजा बंद हो जाए तो भगवान दूसरा खोल देता है। आप जीवन में उलझते नहीं हो। मैंने अनुभव किया है कि जीवन में आपको नीचे खींचने के लिए कई लोग हैं पर ऊपर आपको स्वयं उठना होता है। उन्होंने कहा, ‘हॉकी ने मुझे पहचान दी, हॉकी के कारण ही लोग मेरी बात सुनते हैं, मेरे से बात करते हैं। इसलिए मैं किसी भी भूमिका में हॉकी के लिए ही काम करना चाहती हूं, आप खेल सकते हैं, बच्चों का मार्गदर्शन कर सकते हैं, उनके सिखा सकते हैं। कोई भी मेरे से हॉकी के प्रति मेरे जुनून को अलग नहीं कर सकता। रानी ने मुश्किल राह के बीच भी हॉकी में अपनी अलग पहचान बनाई। उन्होंने कहा, ‘सफर अच्छा रहा पर इसमें काफी कठिनाई भी थी। मैंने काफी कुछ सीखा। यह सब कुछ कड़ी मेहनत करने और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने पर निर्भर करता है ।
रानी ने कहा, ‘मैंने सात साल की उम्र में हॉकी खेलना शुरू किया। मैं 22 साल पहले की बात कर रही हूं। उस समय हरियाणा में लड़कियों का खेल में जाना अच्छा नहीं माना जाता था हालांकि अब हालात बदल गये हैं और माता-पिता अपनी बेटी को खेलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने कहा, ‘जब मैंने पहली बार अपने माता-पिता को कहा था कि मैं हॉकी खेलना चाहती हूं तो उन्होंने कहा था कि ऐसा नहीं हो सकता, लोग क्या सोचेंगे, लड़कियां खेल नहीं खेलती। रानी ने हालांकि अपना समर्थन करने का श्रेय अपने पिता और कोच बलदेव सिंह को दिया।