मेरा वजूद,
क्या आपके अनुमानों पर होगा?
या सच्चे संज्ञानों पर होगा?
मेरा भविष्य लिखने की
कोशिश करने वाले तुम कौन हो?
मेरी संख्या पर जब जब
लोगों ने सवाल दागा, तुम मौन हो,
आपकी नजर में मैं लाचार हो सकता हूं,
आपके दिए नशे का शिकार हो सकता हूं,
आप यह क्यों भूल गए कि
मैं भी होशियार हो सकता हूं,
मुझे कब तक दबाकर रखोगे?
मैं बीज हूं,
स्वतंत्र उगना चाहता हूं,
पल्लवित होना चाहता हूं,
वृक्ष बनना चाहता हूं,
अपनों को छांव देना चाहता हूं,
पर तुम हो कि तरीके बदल बदल
मेरे वजूद को दबाये रखने पर तुले हो,
इतिहास में वैसे भी मुझे भूले हो,
तुम्हारे दमन के हर तरीके से वाकिफ़ हूं,
अब हर चौक चौराहों पर सवाल उठाऊंगा,
तुम्हारी हर अच्छी बुरी करतूत गिनाऊंगा,
मेरे घर के चंद दलाल
कब तक रोक सकेगा मुझे,
तुम्हारे जलाये आग में
कब तक झोंक सकेगा मुझे,
अहंकारी एक दिन जरूर झुकता है,
तुम्हारे हर हथकंडे पर सवाल उठता है।
*राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग*