नई दिल्ली । भारत में भले ही खालिस्तानी आंदोलन को दफन कर दिया हो, लेकिन कनाडा में इसे जमकर हवा मिली है। बता दें कि सिखों के लिए भारत से अलग एक अलग राष्ट्र की मांग करते हुए खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत हुई थी। भारत पर इसका किसी भी तरह का असर नहीं पड़ा। इस आंदोलन को यहीं पर कुचल दिया गया। लेकिन बीच-बीच में कनाडा में इसकी गूंज सुनाई देती है, जहां भारी संख्या में सिख रहते हैं। कनाडा में आज भी जारी इस खालिस्तान आंदोलन के बारे में काफी कुछ सामने आ रहा है। 4 जून 1985 को कनाडाई सुरक्षा खुफिया सेवा (सीएसआईएस) की एक निगरानी टीम ब्रिटिश कोलंबिया के शहर डंकन में एक सिख व्यक्ति का पीछा कर रही थी। सिख व्यक्ति एक घर पर रुका, अंदर गया और एक दूसरे व्यक्ति के साथ बाहर निकलकर वे जंगल में चले गए। निगरानी टीम ने जंगल से एक विस्फोट की तेज आवाज़ सुनी। इसके कुछ दिनों के बाद 23 जून, 1985 को कनाडा से उड़ान भरने वाली एयर इंडिया की दो अलग-अलग फ्लाइट में दो बम विस्फोट हुए। जापान के नरीता में एयर इंडिया फ्लाइट 301 के उतरने के बाद उसमें बम विस्फोट हो गया। इसमें दो लोगों की मौत हो गई। दूसरा बम एयर इंडिया फ्लाइट 182 पर उस समय विस्फोट हुआ जब यह टोरंटो से लंदन के लिए उड़ान भर रहा था। विस्फोट के कारण विमान में सवार सभी 329 लोगों की मौत हो गई। इनमें अधिकांश कनाडाई थे। यह कनाडा के इतिहास का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला था।
हमलों के प्रमुख संदिग्धों में तलविंदर सिंह परमार का नाम शामिल था। 4 जून को सीएसआईएस निगरानी टीम के द्वारा इसका पीछा किया जा रहा था। दूसरा बम बनाने वाला इंद्रजीत सिंह रेयात था, जिसके घर पर परमार जंगल की ओर जाने से पहले रुका था। परमार बब्बर खालसा का नेता था। यह एक ऐसा आतंकवादी संगठन है जो भारत से अलग एक अलग खालिस्तान की मांग कर रहा था। उसकी गतिविधियों पर कनाडाई खुफिया एजेंसी की नजर थी। इसके बावजूद उन्होंने आतंकवादी हमले को रोकने के लिए कुछ नहीं किया।
13 अक्टूबर 1971 को अखबार में खालिस्तान के जन्म की घोषणा करते हुए एक विज्ञापन प्रकाशित किया गया था। विज्ञापन में लिखा था, हम अब और इंतजार नहीं करेंगे। आज हम अंतिम धर्मयुद्ध शुरू कर रहे हैं। हम अपने आप में एक राष्ट्र हैं। इस विज्ञापन का भुगतान पंजाब के पूर्व मंत्री जगजीत सिंह चौहान ने किया था, जो चुनाव हारने के दो साल बाद ब्रिटेन चले गए थे। पाकिस्तान को सिखों के लिए स्वर्ग बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वाशिंगटन में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने पत्रकार टेरी मिलेवस्की से कहा था, भारत का खून बहाना उसका तात्कालिक मकसद था, लेकिन पाकिस्तान भारत और पाकिस्तान के बीच एक रणनीतिक बफर भी बनाना चाहता था। उस बफर के रूप में खालिस्तान की योजना बनाई गई थी।
1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक की शुरुआत में भारत में खालिस्तान की मांग ने जोर पकड़ लिया। लोगों की हत्याओं के लिए जिम्मेदार कट्टरपंथी सिख उपदेशक जरनैल सिंह भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर शरण ली थी। 1 जून, 1984 को भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर परिसर के आसपास हमला किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की मंजूरी दी। इस सैन्य कार्रवाई में भिंडरावाले सहित कई खालिस्तानी आतंकवादी स्वर्ण मंदिर परिसर में मारे गए।इस घटना ने भारत के बाहर विशेषकर कनाडा में खालिस्तान आंदोलन को बढ़ावा दिया।