दशहरा 

आदि शक्ति “माँ”के आगमन 

की वह पावन बेला 

हर्षोल्लास और भक्ति के संगम का शंखनाद 

गली गली मे लगता माँ का जयकारा 

हर सामर्थ्यवान खोल देता है भंडारा 

ऐसे मे  माँ के दैदीप्य चेहरे से निकली आभा 

 फिजा मे संचारित होती  रहती है 

हमे बहुत कुछ देने को तत्पर रहती है 

नौ दिनों का पावन अनुष्ठान हमे बांधे रखता  है 

जगत जननी की आराधना मे 

उनकी पूजा अर्चना मे 

हर प्रार्थना मे एक कामना होती है 

एक विनती होती है 

हे माँ हमारा कल्याण कर 

हे माँ सम्पूर्ण सृष्टि का कल्याण कर 

हे माँ हमे शक्ति दे ताकि 

हम समर्थ हो सकें शमन करने मे

अपनी दुष्प्रवृतियों का 

अपने अंदर के रावण का 

अपने अंदर के वहशीपन का 

कुकुरमुत्ते की तरह फैले भ्रष्टाचार के चमन का 

शांति और अमन के दुश्मनों का 

जिसकी फसल ने हमारा जीना दूभर कर दिया है 

एक जमाने मे तो एक ही दशानन था 

आज तो इनकी पूरी फौज है 

जो हर गली नुक्कड़ पर दिख जाते हैं 

किसी न किसी रूप मे 

किसी न किसी स्थान पर 

जिनकी निगाहें अपने शिकार पर होती हैं 

और जिनकी शिकार कभी निर्भया होती है 

तो कभी कोई और मासूम 

वैसे तो हम हर साल कागजी रावण को जलाते हैं 

बेचारा दहन भी हो जाता है 

पर असली रावण कहाँ दहन होता है 

उसकी तादाद तो हर साल बढ़ती जाती है 

आज तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम के सेना नायक 

हनुमान भी नहीं हैं 

जो फूँक सके रावण की लंका  

ऐसे मे आज सिर्फ तुमसे मिलने वाली शक्ति ही 

मानवता को बचा सकती है 

आधुनिक रावण के अट्ठहास को 

चुनौती दे सकती है 

हे माँ बस इतना चमत्कार कर दो 

उन मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के 

जुनून को हर लो/नष्ट कर दो 

जो समाज के लिए /इंसानियत के लिए 

एक बदनुमा दाग बन चुके हैं 

कोढ़ बन चुके हैं /कलंक बन चुके हैं 

बस ,मेरी  इतनी सी प्रार्थना  स्वीकार कर लो 

माँ आदिशक्ति 

राजेश कुमार सिन्हा

खार (वेस्ट) , मुंबई-52