ठंड में बढ़ सकती है बच्चों में निमोनिया की संभावना मैदानी कार्यकर्ताओं को किया प्रशिक्षित
भोपाल । बच्चों में निमोनिया के लक्षणों की पहचान एवं उसके उपचार एवं प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण आयोजित किया गया जिसमें निमोनिया के आकलन, निमोनिया का वर्गीकरण, खतरनाक लक्षणों के चिन्हों की पहचान, समुदाय आधारित निमोनिया का प्रबंधन, उपचार एवं रेफरल के संबंध में जानकारी दी गई। जिला चिकित्सालय जयप्रकाश में आयोजित प्रशिक्षण में वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ.स्मिता सक्सेना एवं डॉ. प्रिंसिका जैन ने शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र की एएनएम को निमोनिया के संबंध में विस्तार से जानकारी दी।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी भोपाल डॉ.प्रभाकर तिवारी ने बताया कि सर्दी के मौसम में बच्चों में निमोनिया के केसेस ज्यादा पाए जाते हैं। इसे देखते हुए मैदानी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया गया है जिससे कि वह अपने क्षेत्र में निमोनिया के लक्षण वाले बच्चों की शीघ्र पहचान कर शीघ्र प्रबंधन कर सकें । निमोनिया से बचाव एवं जागरूकता हेतु विभाग द्वारा 12 नवंबर से 29 फरवरी तक सांस अभियान संचालित किया जा रहा है। निमोनिया फेफड़े का संक्रमण है। जिससे फेफड़ों में सूजन हो जाती है। निमोनिया होने पर बुखार खांसी और सांस लेने में कठिनाई जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। तेज सांस चलना या छाती का धंसना निमोनिया के दो मुख्य चिन्ह है।
प्रशिक्षण में शिशु रोग विशेषज्ञों द्वारा द्वारा बच्चों में सांस की दर को गिनकर निमोनिया के लक्षणों की पहचान के संबंध में जानकारी दी गई। बच्चों में सांस की गति का ठीक ढंग से आकलन करके निमोनिया को प्रारंभिक अवस्था में ही पहचाना जा सकता है। इसके लिए बच्चों की श्वास को एक मिनट तक निरंतर देखा जाता है। दो माह तक की उम्र के बच्चों की सांस लेने की दर एक मिनट में 60 या उससे अधिक होने पर, 2 माह से एक वर्ष तक की आयु में 50 या उससे अधिक एवं 1 वर्ष से 5 वर्ष तक के बच्चों में प्रति मिनट 40 या उससे अधिक सांस की दर होने पर निमोनिया होने की संभावना रहती है। 5 वर्ष तक के बच्चों में सर्वाधिक मृत्यु का कारण निमोनिया है। वर्ष 2025 तक निमोनिया से होने वाली मृत्यु को 3 हजार प्रति जीवित जन्म से कम किया जाना है । साथ ही गंभीर निमोनिया के नवीन केस को 2010 की तुलना में 75% से कम लेकर आना है।
निमोनिया से बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए टीकाकरण, छह माह तक सिर्फ स्तनपान और उसके बाद उचित पूरक आहार, विटामिन ए का सेवन, साबुन से हाथ धोना, घरेलू वायु प्रदूषण को कम करना आवश्यक है।