व्यंग्य लिखना छोड़िए,  ठंड में पकौड़े तालिए 

अजी ! सुनते हो, जी देवि जी ! बोलिए। दूधवाला आया था सुबह-सुबह धमकी देकर गया है, उसका तीन महींने का बकाया है। कल से से दूध बंद और चाय को भी तरसोंगे। नगर निगम से जलकर वालों ने नोटिस भेजा है उसका छह माह का बकाया है। मकान मालिक ने भी कमरा छोड़ने का अल्टीमेटम दिया है। बच्चे स्कूल से लौट आएं हैं। टीचर ने कहा है कि क्लास टेस्टिंग का वक्त बीत गया। मम्मी-पापा से बोलों कल पचास हजार के साथ सारे डाकूमेंट लेकर आएं और एडमिशन करा लें, वरना कल से स्कूलमत आना। बिजली वाले ने बिल भुगतान न होने पर कनेक्शन काट दिया है। जनाब अब अंधेरे में साहित्य साधना करनी होगी। समझे, पूरे लाख का बजट है और जेब में धेला भी नहीं है। आएं हैं बड़े साहित्यकार बनने। सौ में से अस्सी जगह से रचनाएं संपादक सखेद लौटा देते हैं, उपर से मुफत में धन्यवाद और सहयोग बनाए रखने की अपील भी करते हैं।

श्रीमती बेलनवाली की चूड़िया बार-बार मुझ पर बेलन तानते हुए खनक रही थी। हमने सोचा इसी लय को क्यों न काव्य रचना का आधार बना डालें, लेकिन वह थमने वाली कहां थी। श्रीमान ! आप तो पूरे निठल्ले हो। तुमसे भले तो दलाल हैं जिनके नाम पर दलाल स्ट्रीट बन गई है। देश बदल रहा है, लेकिन लल्लू लाल बदलने से रहे। दिन-रात कम्प्युटर बाबा के साथ बंद कमरे में साहित्य साधना करते रहते हैं। मौसम का मिजाज देख बदलना सीखो। जमाना प्रयोगवादी है।

मेरी मनवा की मान जा। साहित्य का नोबल लेने की जिद छोड़। नगर निगम से थोड़ा जुगाड़ भिड़ाओ। चौराहे पर उ खाली पड़ी जमीन पर पकौड़े की दुकान कर लो। ठंड का मौसम है, समय की नजाकत को देख इसकी शुवात कर लो। बस ! दुकान का शुभारंभ पकौड़ा तलने का मंत्र देने वालों से करवा लो। फिर मीडिया वालों का कैमरे चमकेगा। एक न्यू आइडिया आएगा। अपनी बेगारी दूर हो जाएगी। बेलनवाली की बात जम गई। कहते हैं कि वक्त बदलते देर नहीं लगती। हमारी दुकान चल निकली। आज शहर के नामी गिरामी लोेग आते हैं। सोसायटी में मेरी अलग छबि बन गयी है। किट्टी पार्टी में बेलनवाली के बेलन का जलवा है। शहर के नामी गिरामी साहित्यकार चाय और पकौड़े का लुत्फ उठाने आते हैं।

प्रभुनाथ शुक्ल

(बरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक )

ग्राम: हरीपुर, पत्रालय: अभिया

जिला : भदोही, (उप्र)

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