-इंडिया ने सिखाया ऐसा सबक जिसे चाइना कभी नहीं भूल पाएगा
नई दिल्ली । थलसेना के पूर्व प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने गलवान घाटी के संघर्ष की अनसुनी कहानी सुनाई है। उन्होंने कहा कि चीन छोटे पड़ोसियों को डराने-धमकाने के लिए आक्रामक कूटनीति और उकसावे वाली रणनीति अपनाता रहा है। यही वजह थी कि 2020 में पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना ने पलटवार करते हुए उसे ऐसा सबक सिखाया कि वह हमेशा याद रहेगा। नरवणे ने अपने संस्मरण फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी में गलवान घाटी में हुई घातक झड़पों के बारे में कहा कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिग 16 जून को कभी नहीं भूलेंगे क्योंकि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को दो दशक से अधिक समय बाद पहली बार घातक पटलवार का सामना करना पड़ा था। जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प में 20 सैनिकों के जान गंवाने को याद करते हुए नरवणे ने कहा, यह मेरे पूरे करियर के सबसे दुखद दिनों में से एक था। गौरतलब है कि नरवणे 31 दिसंबर, 2019 से 30 अप्रैल, 2022 तक सेना प्रमुख रहे। उनके कार्यकाल का अधिकतर समय विवादित सीमा पर चीन से उत्पन्न चुनौतियों और बल की लड़ाकू क्षमताओं को बढ़ाने पर केंद्रित रहा। नरवणे ने अपने संस्मरण में लिखा कि 16 जून चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग का जन्मदिन है। यह ऐसा दिन नहीं है जिसे वह जल्द ही भूल जाएंगे।
नरवणे ने कहा कि दो दशक में पहली बार, चीन और पीएलए को घातक पलटवार का सामना करना पड़ा था। उन्होंने लिखा कि वे आक्रामक कूटनीति और उकसाने वाली रणनीति का हर जगह बेधड़क इस्तेमाल करके नेपाल और भूटान जैसे छोटे पड़ोसियों को डराते रहे हैं। पूर्व सेना प्रमुख ने कहा कि इस घटना के दौरान भारत और भारतीय सेना ने दुनिया को दिखाया कि अब बहुत हो चुका। भारत ने पलटवार करके यह दिखाया कि वह पड़ोसी की धौंस का जवाब दे सकता है। ‘पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया’ द्वारा प्रकाशित संस्मरण फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी अगले महीने बाजार में आएगी। प्रमुख रक्षा अध्यक्ष सीडीएस नियुक्त नहीं किये जाने पर उन्होंने कहा कि जब मुझे सेना प्रमुख बनाया गया था तब भी मैंने सरकार की समझ पर सवाल नहीं उठाया था, तो इस मामले में ऐसा क्यों करता?
नरवणे ने अपने संस्मरण में लिखा है, जैसे ही तनावपूर्ण बातचीत शुरू हुई, हमारे कई लड़के, जो या तो भटक गए थे या जिन्हें पीएलए ने भोजन या चिकित्सा सहायता के बिना कुछ समय के लिए हिरासत में लिया था, बेस पर लौट आए। हालांकि, उनमें से 15 ने अपनी चोटों और हाइपोथर्मिया के कारण दम तोड़ दिया। यह मेरे पूरे करियर के सबसे दुखद दिनों में से एक था। उन्होंने कहा कि गलवान घाटी संघर्ष दशकों में भारत और चीन के बीच सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष था। नरवणे का कहना है कि चीन के इस स्वीकारोक्ति के बावजूद कि झड़प में उसके केवल पांच सैनिक मारे गए, यह स्पष्ट था।
नरवणे ने लिखा कि हमारे लोग जो चीनी हाथों में थे, उन्हें खुले में रखा गया था और उन्होंने कई शवों को नदी से बाहर निकलते देखा था। जब भी ऐसा होता था, तो उन्हें नए सिरे से पिटाई का शिकार होना पड़ता था। नरवणे का कहना है उनकी प्रतिक्रिया की सरासर बर्बरता अपने आप में उनके द्वारा उठाए गए नुकसान का संकेत थी। शुरुआत में उन्होंने किसी भी तरह के हताहत होने की बात स्वीकार नहीं की; फिर कई महीनों के बाद, उन्होंने चार या पांच लोगों के मारे जाने की बात स्वीकारी। पूर्व सेना प्रमुख का कहना है कि पूर्वी लद्दाख में संकट ने उत्तरी मोर्चे पर सेना के पुनर्संतुलन के लिए उत्प्रेरक का काम किया। चीनी आक्रमण के बाद सेना ने कई प्रमुख इकाइयों को अन्य हिस्सों से उत्तरी मोर्चे पर तैनात कर दिया था।