मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का नया रिकॉर्ड बना रहे नीतीश कुमार

नई दिल्ली । फिर एक बार पलटीमार, फिर एक बार नीतीशे कुमार। देखा जाए तब यह नारे बिहार की राजनीति की हकीकत बन चुके हैं। राज्य में भले कोई भी गठबंधन सत्ता में हो मगर मुख्यमंत्री नीतीश ही रहते हैं। 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा और जदयू ने मिलकर सरकार बनाई मगर कुछ समय बाद नीतीश भाजपा का साथ छोड़कर राजद के साथ महागठबंधन बनाकर मुख्यमंत्री बन गए। महागठबंधन में आते ही उन्होंने भाजपा को देशभर से उखाड़ फेंकने की कसम खाकर राष्ट्रीय स्तर पर सभी विपक्षी नेताओं को एकजुट कर इंडिया गठबंधन की बुनियाद रखी। इस इंडिया गठबंधन की पहली बैठक भी पटना में हुई जिसमें नीतीश कुमार ने देशभर के विपक्षी नेताओं को बड़े-बड़े सपने दिखाए, मगर जमीनी हकीकत का अहसास होते ही सबसे पहले पलटी मारने के लिए नीतीश कुमार ही आगे आ गए। नीतीश ने अब वापस एनडीए का हाथ थामने का मन बना लिया है जिससे बिहार की राजनीति गर्मा गई है। माना जा रहा है कि जल्द ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर भाजपा के समर्थन से फिर नीतीश मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। यदि ऐसा होता है, तब पिछले लगभग दो दशक से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का नया रिकॉर्ड भी कायम करने वाले है।
माना जा रहा है कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव विधानसभा अध्यक्ष से फोन पर बात कर चुके हैं। लालू यादव ने बगैर जदयू के भी सरकार बनाने की संभावनाओं को तलाशा है लेकिन उपमुख्यमंत्री पद का लालच देने के बावजूद जीतन राम मांझी की पार्टी साथ आने के लिए तैयार नहीं है। बताया जा रहा है कि नीतीश के रुख से लालू यादव और तेजस्वी यादव के पैरों तले जमीन खिसक गई है, क्योंकि कुछ समय पहले तक नीतीश और तेजस्वी एक साथ देशभर का दौरा कर विपक्षी एकता को मजबूत करने का प्रयास कर रहे थे। यही नहीं नीतीश ने तेजस्वी को खुलेआम अपना उत्तराधिकारी तक घोषित कर दिया था मगर अब वह परिवारवाद के खिलाफ खड़े हो गए हैं। तेजस्वी की मुश्किल यह है कि उपमुख्यमंत्री पद जाते ही उनकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं, क्योंकि अब तक वह सरकारी कामकाज का हवाला देकर जांच एजेंसियों के समक्ष पूछताछ के लिए हाजिर नहीं हो रहे थे। माना जा रहा है कि अब घोटाला मामलों में उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
जहां तक भाजपा की बात है, तब पार्टी की राज्य इकाई में दो धड़े हैं जिनमें से एक नीतीश के साथ जाने के पक्ष में है और दूसरा नीतीश के साथ नहीं जाना चाहता है। लेकिन दोनों ही पक्ष कह रहे हैं कि पार्टी नेतृत्व का जो भी फैसला होगा वह उसके साथ खड़े रहने वाले हैं। माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान ने लोकसभा चुनावों को देखते हुए ही नीतीश कुमार के साथ जाने का फैसला किया है। भाजपा नेतृत्व जान रहा है कि भले नीतीश का साथ मिलने से उसे बिहार में कोई फायदा नहीं होगा लेकिन इससे देशभर में खड़े हो रहे इंडिया गठबंधन का आधार जरूर खत्म होगा और विपक्षी दलों का हौसला पस्त होगा।
आशीष दुबे / 27 जनवरी 2024