हनुमान ने हर युग में अपनी शक्ति से जीवों का कल्याण ही किया

:: हरिधाम आश्रम पर झांसी की मानस कोकिला श्रीमती रश्मि देवी के श्रीमुख से हनुमत कथा जारी ::
इन्दौर । भारत भूमि में मनुष्य के रूप में जन्म लेना तो सौभाग्य की बात है ही, उससे भी बड़ा सौभाग्य इस बात का होना चाहिए कि हमें राम और हनुमान की कथाएं सुनने का अवसर मिल रहा है। पहले कथाएं कम होती थी, लेकिन समाज में सदभाव और प्रेम का माहौल था, लेकिन अब कथाएं बढ़ने के बावजूद समाज में बिगाड़ बढ़ रहा है। हनुमान को यदि हम हर युग के देवता कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्होंने अपनी भक्ति से हर युग में जीवों का कल्याण ही किया है।
ये दिव्य विचार हैं झांसी की आई मानस कोकिला श्रीमती रश्मि देवी के, जो उन्होंने शनिवार को कैट रोड हवा बंगला स्थित हरिधाम आश्रम पर पीठाधीश्वर महंत शुकदेवदास महाराज के सानिध्य में चल रही हनुमत कथा के दौरान दंडकारण्य वन में हनुमानजी के प्रपसंग पर व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व डॉ. सुरेश चौपड़ा, मुकेश बृजवासी, सुधीर अग्रवाल, अशोक कुमावत, पुरुषोत्तमदास बैस, योगेश गुर्जर एवं मातृशक्ति की ओर से श्रीमती निर्मला बैस, ममता कोठारी, संतोष वैष्णव, मंजू कुशवाह आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा 23 अप्रैल तक प्रतिदिन दोपहर 3 से सायं 6 बजे तक हो रही है। कथा के दौरान संगीत कलाकारों द्वारा भजनों तथा रामायण की चौपाइयों का प्रस्तुतीकरण भक्तों को खूब थिरका रहा है।
मानस कोकिला रश्मि देवी ने कहा कि हर कथा में प्रारंभिक दौर में भजन करना जरूरी होता है। जैसे कुए में घड़े को पानी से भरने के लिए दो-चार बार उल्टा-पल्टा घुमाना पड़ता है, ताकि पानी पर जमी कायी हट जाए। इसी तरह जब हम कथा श्रवण के लिए बैठते हैं तो काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी कायी को छांटने के लिए हमें भजन संकीर्तन करना होता है। हम सब लोग भाग्यशाली हैं, क्योंकि हमें एक तो भारत भूमि में जन्म मिला, दूसरे मनुष्य के रूप में मिला और तीसरे हमें अपने धर्मग्रंथों के साथ संतों, विद्वानों का सानिध्य भी सहज ही मिल रहा है। पहले कथाएं कम होती थी और समाज में एक-दूसरे के प्रति सदभाव होता था। अब कलयुग में कथाएं तो बढ़ गई हं, लेकिन एक –दूसरे के प्रति स्नेह और सदभाव कम होता जा रहा है। राम कथा और उसमें भी जहां हनुमत कथा हो, वहां निश्चित ही समाज में सदभाव बढेगा। हनुमान भारतीय समाज और संस्कृति में भक्ति के साथ वीरता के भी प्रतीक हैं। रामायण में तीन प्रकार के माने गए हैं – विषयी, साधक और सिद्ध। अब इनमें सुग्रीव विषयी है, निषाधराज साधक है और विभीषण सिद्ध हैं। हम सब सारी कथाएं तो जानते हैं, लेकिन इन कथाओं में निहित संदेशों को जानते हुए भी महत्व नहीं देते, यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। इसे दूर करने के लिए एकाग्रचित्त होकर हनुमान की तरह प्रभु श्रीराम को अपना आराध्य मानकर काम करेंगे तो अपने लक्ष्य तक जरूर पहुंच जाएंगे।