नई दिल्ली । देश में एक बार फिर कोरोना की आहट आ रही है। जिस वेरिएंट ने सिंगापुर में तबाही मचाई थी अब उसी वेरिएंट के 324 केस भारत में मिले हैं। इंसाकोग के सूत्रों की ओर से गई जानकारी के मुताबिक भारत में केपी.2 और केपी.1 वेरिएंट के कुल 324 केस मिले हैं। ये दोनों ही वेरिंएट जेएन.1 वेरिएंट के उप वेरिएंट हैं। कोरोना के म्यूटेशन को लेकर लगातार की जा रही निगरानी के बाद यह आंकड़ा सामने आया है। दोनों ही म्यूटेंट की वजह से बीमारी की गंभीरता बढ़ी नहीं है। ये देखा गया है कि जेएन.1 में दोनों म्यूटेशन इसके स्पाइक प्रोटीन में हुए हैं, जिसका नाम फिलिरिट रखा है।
ओमिक्रोन और जेएन.1 से भी कम खतरा देखा गया था और अब इसके बच्चे केपी के दोनों वेरिएंट्स की भी क्षमता संक्रमण तीव्र करने की तो है लेकिन गंभीरता नहीं है। ‘इस समय जो बड़ी बात दिख रही है, वह ये कि कोरोना वायरस ऐसा रास्ता पकड़ रहा है, जिसमें संक्रमण तो बढ़ रहा है लेकिन खतरा कम हो रहा है। अगर यही रहा तो संभव है कि कुछ महीने के बाद कोरोना को लेकर बहुत ज्यादा बातचीत भी न हो। कोरोना एक तरह से कन्वर्जेंट इवॉल्यूशन के फेज में है। जो खुद को फैला तो रहा है लेकिन उसकी प्रभावित करने की तीव्रता कम हो रही है। ऐसे में मुझे लगता है कि लोगों को 100 प्रतिशत घबराने की जरूरत नहीं है.. मुझे लगता है कि ये वेरिएंट भी डेढ़ दो महीने में खत्म हो जाएंगे।
पूर्व डॉ. सीजी पंडित नेशनल चेयर एंड हेड, एपिडेमियोलॉजी एंड कम्यूनिकेबल डिजीज आईसीएमआर डॉ आर आर गंगाखेड़कर बताते हैं कि कोरोना के नए वेरिएंट के संक्रमित सामने आने के दो पहलू हैं। एक नेगेटिव और दूसरा पॉजिटिव। नेगेटिव साइड ये है कि कोरोना वायरस अभी भी है। इससे कोमोरबिड और एल्डरली दोनों को खतरा है। खेड़कर कहते हैं, ‘जेएन.1 के सब वेरिएंट केपी.1 और केपी.2 के केस मिले हैं लेकिन इनमें कोई भी सीवियर नहीं है। यहां तक कि किसी को भी अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ी लेकिन हमें ये मालूम नहीं चला है कि कि केपी.2 के बाद क्या लांग कोविड हो सकता है? अगर लांग कोविड होता है तो क्या एल्डरली में यह ज्यादा दिखेगा या असर करेगा? इसलिए इससे थोड़ा सा सावधान रहने की भी जरूरत है।’ लेकिन एक पॉजिटिव चीज यह सामने आई है कि डेल्टा के बाद ओमिक्रोन आया, फिर जेएन.1 आया, फिर उसके भी स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन हुआ तो अब केपी.2 और केपी.1 आ गए। लेकिन इनमें एक अच्छी चीज ये देखी गई है कि खतरे की तीव्रता कम होती जा रही है। मरीजों में लक्षण या गंभीरता कम होती जा रही है। अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या लगातार घटती जा रही है।