विश्व कछुआ दिवस- कछुआ आध्यात्मिक रुप से दीर्घायु, स्थिरता, जड़ता, आत्म सुरक्षा, अनुकूलनशीलता एवं लचीलेपन का प्रतीक है – योग गुरु महेश अग्रवाल*

भोपाल । आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें है वर्तमान में भी ऑनलाइन माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है। वर्तमान कोविड 19 महामारी में भी हजारों योग साधक अपनी योग साधना की निरंतरता से विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं स्वस्थ एवं सकारात्मक रहते हुए सेवा के कार्यों में लगे है।
योग गुरु महेश अग्रवाल ने विश्व कछुआ दिवस के अवसर पर बताया कि प्राणायाम का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है सम्पूर्ण स्वस्थ रहते हुए लम्बी उम्र प्राप्त करना। प्राणायाम द्वारा हम श्वास की गति को नियंत्रित कर सुखी हो सकते हैं। जिसका सबसे अच्छा उदाहरण योग में दिया जाता हैं कछुआ के बारे में जो की 1 मिनिट में श्वास प्रश्वास 4 से 5 बार लेता हैं उसकी उम्र लगभग 200 से 400 वर्ष मानी गई हैं । ऐसे ही प्रकृति में भी देखते हैं कि जो पशु – पक्षी तेज गति से जल्दी -जल्दी श्वास – प्रश्वास करते हैं, उनकी उम्र कम होती हैं। इस प्रकार सिद्ध होता हैं कि श्वास की गति को नियंत्रित कर हम अपने बहुमूल्य जीवन को बढ़ा सकते हैं।
दुनिया भर में 23 मई को विश्व कछुआ दिवस मनाया जाता हैं। यह दिन लोगों का ध्यान कछुओं की तरफ आकर्षित करने और उन्हें बचाने के लिए किए जाने वाले मानवीय प्रयासों को प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता हैं।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कुर्मासन एक संस्कृत भाषा से लिए गया शब्द है, जो दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें पहला शब्द “कुर्मा” का अर्थ “कछुआ” है और दूसरा शब्द “आसन” जिसका अर्थ “मुद्रा या स्थिति” है। यह कछुए के समान दिखने वाली स्थिति है। जिस तरह कछुआ किसी भी प्रकार का खतरा महसूस होने पर अपने खोल या आवरण के अंदर चला जाता है, उसी तरह कुर्मासन करने से आप अंदर की ओर आकर्षित हो जाते हैं और बाहरी दुनिया की अव्यवस्था से बच सकते हैं। इस आसन को अंग्रेजी में टोरटोइस पोज़ के नाम से जाना जाता है। यह आसन आपको अपनी आंतरिक दुनिया से जुड़ने की एक शानदार भावना देगा। यह मुद्रा आंतरिक जागरुकता और विश्राम के लिए रूपांकित की गई है। इस आसन को करने पर आपके हाथ पैर कछुए के समान बाहर निकले दिखाई देते हैं। कुर्मासन योग आसन को करने से हमारे शरीर का एक अच्छा व्यायाम हो जाता है। शरीर को चुस्त और तंदुरुस्त रखने के लिए कुर्मासन एक अच्छा आसन है। यह मुद्रा हमारे शरीर के लिए अनेक प्रकार से लाभदायक हैं। यह आसन पीठ और कमर पर अच्छा खिंचाव देता है, साथ में यह रीढ़ की हड्डी में भी रक्त-संचार को बढ़ाता है। कुर्मासन पेट में बनाने वाली गैस और कब्ज से राहत देने में मदद करता है।
प्राचीन परिदृश्यों के बीच, कछुआ एक प्रतीक है जो दीर्घायु, सुरक्षा और जमीन से जुड़े रहने के गुणों का प्रतीक है। अपनी धीमी और जानबूझकर की गई चाल के साथ, कछुआ आध्यात्मिक चिकित्सा का वाहक बन जाता है, जो हमें स्थिरता खोजने, नुकसान से सुरक्षा पाने और अपनी गति से जीवन जीने की कला को अपनाने की परिवर्तनकारी यात्रा पर मार्गदर्शन करता है। कछुए के प्रतीकवाद के मूल में दीर्घायु का सार निहित है। अपने लंबे जीवनकाल के साथ, कछुआ सहनशक्ति और लचीलेपन का एक कालातीत प्रतीक बन जाता है। कछुए की आध्यात्मिक चिकित्सा हमें जीवन के प्रति धैर्यपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने, समय बीतने का सम्मान करने और हमारी भलाई और जीवन शक्ति का समर्थन करने वाले विकल्प चुनकर दीर्घायु के उपहार को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। कछुए की दीर्घायु की भावना को मूर्त रूप देकर, हम प्रत्येक क्षण के लिए कृतज्ञता की भावना विकसित कर सकते हैं, उम्र के साथ आने वाले ज्ञान को महत्व दे सकते हैं, और अनुग्रह और प्रशंसा के साथ जीवन की यात्रा का आनंद ले सकते हैं। लंबी आयु के अलावा, कछुआ सुरक्षा का प्रतीक है। अपने खोल में वापस जाने और खुद को नुकसान से बचाने की अपनी क्षमता में, कछुआ आत्म-संरक्षण और हमारी भलाई की सुरक्षा के महत्व की याद दिलाता है। कछुए की आध्यात्मिक ऊर्जा हमें नकारात्मक प्रभावों से खुद को बचाने और अपने आंतरिक संतुलन को बनाए रखने के लिए शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह की सीमाएँ बनाने के लिए प्रेरित करती है। पृथ्वी से घनिष्ठ संबंध के कारण, कछुआ स्थिरता और जड़ता का प्रतीक बन जाता है। कछुए की आध्यात्मिक चिकित्सा हमें वर्तमान क्षण में खुद को स्थिर रखने, जीवन की उथल-पुथल के बीच केंद्रित रहने और आंतरिक शांति की गहरी भावना पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करती है। कछुए की ज़मीन पर टिके रहने की भावना को अपनाकर, हम सादगी में सांत्वना पा सकते हैं, अनावश्यक चिंताओं से छुटकारा पा सकते हैं, और परिवर्तन की स्थिति में एक स्थिर मार्ग बनाए रख सकते हैं।
योग आसनों के नाम – एक रहस्यमय तार्किक दृष्टिकोण हठयोग के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के योगासनों का वर्णन आता है। हमारे आचार्यों ने विभिन्न प्रकार के आसनों के नाम भिन्न-भिन्न प्रकार से रखे। उन्होंने इन्हें बड़े अर्थपूर्ण नाम दिए। कुछ आसनों के नाम पक्षियों से संबंधित हैं जैसे बकासन (बगुला), मयूरासन (मोर), कुक्कुटासन (मुर्गा), हंसासन (हंस)। कुछ के नाम कीड़ों से जोड़े गए हैं। वृश्चिकासन (बिच्छू), शलभासन (टिड्डा)। कुछ के नाम जानवरों पर आधारित हैं श्वानासन (कुत्ता), उष्ट्रासन (ऊँट), सिंहासन (सिंह), गोमुखासन (गाय), वातायन (घोड़ा), आदि कुछ के नाम पेड़-फूल आदि पर रखे जैसे वृक्षासन (पेड़), ताड़ासन (ताड़), पद्मासन (कमल) आदि। कुछ जलचर और उभयचर प्राणियों के नाम पर भी हैं जैसे मत्स्यासन (मछली), कूर्मासन (कछुआ), भेकासन (मेढ़क), मकरासन (मगर) ज़मीन में रेंगने वाले प्राणी सर्प को सर्पासन व भुजंगासन नाम दिया। हनुमानासन, वीरासन, महावीरासन, बुद्धासन जैसे आसनों के नाम भगवान की छवि से लिए और महान ऋषियों जैसे कपिल (कपिलासन), वशिष्ठ (वशिष्ठासन), विश्वामित्र, भागीरथ आदि नाम उनकी याद के लिए हमारे संस्कार में डाले।
आखिर क्या कारण रहा कि हमारे महाज्ञानी ऋषि-मुनियों ने ये नाम उनसे जोड़े। यहाँ यह तर्क बड़े सरल ढंग से किया जा सकता है कि जब हम उस आसन की अंतिम स्थिति में पहुँचते हैं तो वह आसन उसके स्वरूप में वैसा ही दिखता है जैसा आसन का नाम है। जैसे कुर्मासन , जब हम यह आसन लगाते हैं तो यह आसन कछुआ के समान ही दिखाई पड़ता है और साधक को उसके प्रति लगाव भी उत्पन्न करना रहा है। इसके पीछे और भी तर्क दिए जा सकते हैं। जब हम भिन्न-भिन्न प्राणियों के समान उनकी आकृति ग्रहण करते हैं तो साधक के मन में उनके प्रति सम्मान व प्रेम उत्पन्न होना चाहिए एवं प्राणियों से घृणा नहीं होनी चाहिए। कारण वह जानता है कि सारी सृष्टि में छोटे जीव से लेकर बड़े-बड़े महात्माओं तक वही विश्वात्मा श्वास लेता है, जो असंख्य रूपों को ग्रहण करता है। वह निराकार रूप ही उसका सबसे महान रूप है। वैसे यहाँ तर्क यह भी है कि ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी को एक न एक गुण विशेष रूप से प्रदान किया है, यहाँ तक कि पेड़-पौधे तक में कोई न कोई गुण विशेष रहता है। चूँकि मनुष्य अपने अंदर अधिक से अधिक गुण समाहित करना चाहता है, अतः उसका उद्देश्य आसन से वह प्राप्त करना है एवं उस आसन से जो उसके लाभ हैं वह भी प्राप्त करना चाहता है। एक कारण और तार्किक है कि हमें वे आचार्य प्रकृति से निकटस्थ करना चाहते हैं ताकि प्रकृति के गुणों को भी आत्मसात् कर सकें।