पटना । राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने इस बार लोकसभा चुनाव में 4 सीटें जीतकर पार्टी को संजीवनी दी है। इससे पहले हुए लोकसभा चुनाव में राजद अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। बता दें इस बार तेजस्वी के नेतृत्व में राजद ने लोकसभा चुनाव लड़ा था और उन्होंने पूरे राज्य में जमकर चुनाव प्रचार किया था। वो बात अलग है कि उनके परिवार से केवल मीसा भारती ही लोकसभा तक पहुंच पाईं हैं। तेजस्वी के नेतृत्व में आरजेडी ने बिहार की 26 सीटों पर चुनाव लड़ा और चार सीटों पर जीत दर्ज की। चार सीटों में पाटलिपुत्र भी शामिल हैं, जहां से लालू की बेटी मीसा भारती ने जीत दर्ज की है।
2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। ऐसे में आरजेडी के लिए ये चुनाव किसी संजीवनी से कम नहीं है। तेजस्वी के नेतृत्व में पार्टी ने चार सीटों पर जीत दर्ज की, जो पार्टी के लिए एक सकारात्मक संकेत है। इस बार के आम चुनाव से तेजस्वी यादव ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए मंच तैयार कर दिया है।
इस चुनाव में जिस तरह से ग्राउंड पर उतरकर तेजस्वी यादव ने काम किया, उससे राजनीतिक जानकारों का मानना है कि तेजस्वी यादव, बिहार में नीतीश कुमार या भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ सीएम के लिए संभावित विपक्षी उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं। बता दें, आरजेडी और उसके सहयोगियों, जिनमें कांग्रेस और सीपीआई-एमएल शामिल हैं, ने 40 में से 9 सीटें हासिल कीं। तेजस्वी की राजनीतिक यात्रा में उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। 2015 के राज्य चुनावों के दौरान, जहां आरजेडी ने जेडीयू के साथ गठबंधन किया था, वे डिप्टी सीएम के पद पर कार्यरत थे। नौकरी, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करके तेजस्वी ने युवाओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत की। लोकसभा चुनाव के दौरान भी तेजस्वी ने प्रभावी ढंग से बिहार की जनता को यह संदेश दिया कि उन्होंने बिहार के डिप्टी सीएम के रूप में 17 महीनों में 5 लाख नौकरियां युवाओं को दीं। जनवरी में जब जेडीयू ने आरजेडी से नाता तोड़ लिया और तेजस्वी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी, तो उन्होंने नीतीश पर निजी हमले करने से परहेज किया। इसके बजाय, उन्होंने नीतीश को भड़काने का काम नहीं किया, जिससे राजनीतिक पर्यवेक्षक अटकलें लगाते रहे। तेजस्वी ने 4 जून के चुनाव नतीजों के बाद नीतीश कुमार की ओर से किसी बड़े फैसले का संकेत देते हुए कहा, चाचा कोई बड़ा फै