लखनऊ । यूपी के चुनावी नतीजों में उलटफेर के बीच एक 39 साल का दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने नगीना सीट पर बीजेपी और सपा जैसे बड़े दलों को चारो खाने चितकर जीत हासिल की है। जीत भी 150,000 वोटों के बड़े अंतर से। चंद्रशेखर की जीत न केवल यूपी, बल्कि पूरे देश के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है! राजनीतिक पंडितों का मानना है कि वह यूपी के नए दलित नेता के रूप में उभर हैं और वह मायावती के प्रभुत्व को चुनौती देंगे। चंद्रशेखर की जीत इसलिए भी अहम है, कि वे सत्तारूढ़ बीजेपी के के साथ -साथ सपा के खिलाफ भी चुनाव लड़ रहे थे और कई चुनाव विश्लेषकों ने उन्हें कमजोर माना था। हालांकि, सामाजिक न्याय, आर्थिक सशक्तिकरण और दलितों के लिए आरक्षण जैसे मुद्दों पर उनके कामों ने मतदाताओं, खासकर नगीना के वोटरों पर असर डाला।
चंद्रशेखर की जीत को यूपी की दलित राजनीति में संभावित गेम-चेंजर के रूप में देखा जा रहा है। यूपी की आबादी में 21 फीसदी दलित बैंक वोट उन्हें पसंद कर रहा है। चंद्रशेखर की लोकप्रियता की वजह उनका संगठन भीम आर्मी भी है, जोकि एक दलित अधिकार संगठन है। यह न केवल यूपी बल्कि कई राज्यों में दलित उत्पीड़न की घटनाओं के खिलाफ आंदोलनों में आगे रहा है। जैसे-जैसे चंद्रशेखर की लोकप्रियता बढ़ रही है। माना जा रहा है कि वे यूपी के ‘नए दलित नेता’ बन सकते हैं और संभवतः बसपा प्रमुख मायावती से छीनकर दलित राजनीति की बागडोर संभाल सकते हैं। मायावती जो दो दशकों से दलित राजनीति ताकत रही हैं, दलितों-मुस्लिमों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर खुलकर सामने आने में उनकी रुचि की कमी के कारण अपनी लोकप्रियता कम होती जा रही हैं1 इस लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट न मिलना और उसके प्रत्याशियों का खराब प्रदर्शन भी इस ओर इशारा कर रहा है।
लोग तो यह भी कह रहे हैं कि चंद्रशेखर की जीत से बसपा के अंदर बिखराव की संभावना है, क्योंकि मायावती के नेतृत्व से मोहभंग हुए युवा दलित अब चंद्रशेखर को उम्मीद और बदलाव के रूप में देख रहे हैं। बसपा की हाल के वर्षों में लोकप्रियता घटी है और चंद्रशेखर की जीत इस बात का संकेत है कि अब यूपी की दलित राजनीति में बदलाव का समय आ चुका है।
बसपा के संस्थापक कांशीराम के नाम पर मायावती की पूरी राजनीतिक टिकी है। उन्हीं कांशीराम को चंद्रशेखर ने अपना आदर्श बनाया और उन्हीं के नाम पर अपनी पार्टी का नाम आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) रखा है। चंद्रशेखर ने मायावती के दलित वोट बैंक, जिस पर यूपी में उनका अच्छा असर था, उसी में सेंध लगा दी। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि केवल दलित नहीं बल्कि अल्पसंख्यक वोट भी मायावती के हाथ से खिसक गया। खुद मायावती ने कहा कि अगले चुनाव में सोच समझकर ही अल्पसंख्यक समुदाय को वो टिकट देंगी। इसके पीछे उनका मानना है कि उनसे कहीं न कहीं गलती तो हुई है, जो मुस्लिम वोट बैंक भी उनसे दूर जा रहा है।